मकर संक्रांति पर सुख-समृद्धि और धन-धान्य की होगी वृद्धि

 इस बार की संक्रान्ति कैसी रहेगी आपके लिए?

श्वेत तिलो से देवताओ का तथा श्याम तिलो से पितरों का तर्पण करना चाहिए

मकर संक्रान्ति के दिन शिवालय में तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,

जनवरी के महीने का सबसे बड़ा त्योहार मकर संक्रांति बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह की द्वादशी तिथि पर मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस बार मकर संक्रांति 14 जनवरी, शुक्रवार के दिन मनाई जा रही है। लेकिन पंचांग भेद के कारण कुछ स्थानों पर मकर संक्रांति 15 जनवरी को भी मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। जिसका मतलब होता है सूर्य उत्तर की दिशा की ओर बढ़ते हैं। इस दिन से दिन बड़े और राते छोटी होनी शुरू हो जाती है।

मेदिनीय संहिता के अनुसार यदि मेष, वृषभ, कर्क, मकर और मीन राशि मे संक्रान्तियां होती है तो वे सुखदायक होती है। इस वर्ष मकर संक्रान्ति वृषभ राशि मे घटित होने से सुखदायक रहेगी। बालव करण मे होने से बैठी अवस्था मे प्रवेश कर रही है। फलप्रदीप मे कहा गया है कि यदि बैठे अवस्था में प्रवेश होता है तो धन-धान्य की वृद्धि, आरोग्यता से संसार मे प्रसन्नता एवं समस्त कार्यों मे समता बनी रहेगी।वस्तुओ के मूल्य मे वृद्धि न होगी। संक्रान्ति का प्रवेश रात मे हो रहा है।इसलिए उत्तम माहौल बना रहेगा। मृगशिरा नक्षत्र मे होने से "मन्दाकिनी" संज्ञा रहेगी। यह क्षत्रियो सैन्य बलो और सैनिको के लिए अनुकूल एवं शुक्रवार को होने से पशुओ को आरोग्यता प्रदान करने वाली एवं भारवाहको के लिए सुख प्रदान करने वाली होगी। रात्रि के प्रथम प्रहर मे होने से पिशाओ क्रूर कर्म करने वालो के लिए दुःखद, अनैतिक कार्यों से जुड़े लोगों प्रतिकूल के लिए दुःखद रहेगी।

मकर संक्रान्ति के बाद जन्म और मृत्यु दोनो शुभ है। शास्त्रों मे कहा गया है कि 

"मकर राशौ सूर्यस्य संक्रमणं स्यात् तदा देवानां दिनोदयः दैत्यानां रात्र्युद्गगम्।" 

जीवन के सभी शुभ कार्य दोपहर के समय, शुक्ल पक्ष और उत्तरायण में करना चाहिए। संक्रान्ति के चौथा दिन शुभ कार्यों के लिए बहुत उत्तम माना जाता है। इस दिन शुभ कार्य करने के लिए मुहुर्त शोधन की आवश्यकता नही होती है।उत्तरायण काल जन्मे हुए बच्चों के लिए उत्तम रहता है।उत्तरायण काल जीवन के लिए ही नही बल्कि मुत्यु के लिए भी शुभ मुहुर्त है। इसलिए भीष्म पितामह ने महाभारत के समय देहत्याग हेतु मृत्यु शय्या पर लेटे हुए उत्तरायण की प्रतिक्षा की थी। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि उत्तरायण के 6 महीने मे दिवंगत योगीजन ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।

संक्रान्ति पुण्यकाल में पवित्र नदियों में स्नान करके एक ताम्बे के लोटे मे शुद्ध जल लेकर उसमे रोली, अक्षत, लाल पुष्प तथा तिल और गुड़ मिलाकर पूर्वाभिमुख खड़े होकर दोनो हाथो को ऊॅचा करके सूर्यदेव को श्रद्धापूर्वक गायत्री मन्त्र अधवा निम्न मन्त्र से अर्घ्य प्रदान करें 

"ऊॅ घृणि सूर्याय नमः श्री सूर्य नारायणाय अर्घ्यं समर्पयामि।" 

इस दिन तिल का दान पापनाशक माना जाता है।तिल को पुराणो में पापनाशक माना गया है। इस मकर संक्रान्ति पुण्यकाल में तील के तेल की मालिश, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल का हवन, तिल से तर्पण, श्वेत तिल युक्त वस्तुओ का दान एवं सेवन करने से पूर्वजन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। धर्मसिन्धु के अनुसार श्वेत तिलो से देवताओ का तथा काले तिलो से पितरों का तर्पण करना चाहिए। मकर संक्रान्ति के दिन भगवान शिव के मन्दिर मे तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

उत्तरायण के छह महीने में सूर्य क्रमशः मकर, कुंभ, मीन, मेष, वृषभ और मिथुन इन 6 राशियों में गमन करता है। अतः उत्तरायण में सूर्य मकर से कर्क रेखा की ओर गमन करता है। सनातन धर्म अनुसार दक्षिणायन के 6 महीनों को देवताओं की रात्रि मानी गई है। इसी प्रकार उत्तरायण के छह महीने देवताओं के अधीन रहते हैं। उत्तरायण के समय पृथ्वी देवलोक के सामने से गुजरती है। इसलिए स्वर्ग के देवता उत्तरायण काल में पृथ्वी पर भ्रमण करने आते हैं तथा मनुष्यों द्वारा दिये गये हविष्य आदि स्वर्ग के देवताओं को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है। इसलिए उत्तरायण काल एक पुनीत काल है। शुभ कार्य उत्तरायण काल में करना अत्यंत अशुभ माना जाता है। मकर राशि में प्रवेश करते ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है ।इसे उत्तरायण पर्व भी कहा जाता है। सूर्य जब धनु राशि में होता है तो राते बड़ी और दिन छोटे होते हैं। मकर संक्रांति के बाद दिन की अवधि धीरे-धीरे बढ़ना शुरू हो जाती है। मकर संक्रांति के बाद राते छोटी होने लगती है।दिनमान बढ़ने लगता है। मकर संक्रान्ति के बाद 20 घटी (8 घंटा) और कुछ प्राचीन आचार्यो के अनुसार 40, घटी (16 घंटा) तक विशेष पुण्यकाल रहता है। पूर्वकालामृतम् मे 40 घटी तक पुण्यकाल बताया गया है।

उत्तरायण के छह महीने में सूर्य धर्मशाला मकर कुंभ मीन मेष वृषभ मिथुन इन 6 राशियों का चक्कर करता है आधा उत्तरायण में सूर्य मथुरा रेखा में ग्वार का रेखा की ओर गमन करता है सनातन धर्म अनुसार दक्षिणायन के 6 महीनों को देवताओं की रात्रि मानी गई है इसी प्रकार उत्तरायण के छह महीने देवताओं के अधीन रहते हैं उत्तरायण के समय पर लोग के सामने से गुजरती है इसलिए स्वर्गीय कीजिए दीजिए बताओ उत्तरायण काल में पृथ्वी पर भ्रमण करने आते हैं तथा प्रधानों पर मनुष्यों द्वारा दिया गया हविष्य आदि स्वर्ग के देवताओं को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है इसलिए उत्तरायण काल एक पुनीत काल है शुभ कार्य उत्तरायण काल में करना अत्यंत अशुभ माना जाता है मकर राशि में प्रवेश करते ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है इसे उत्तरायण पर्व भी कहा जाता है सूर्य जब धनु राशि में होता है तो रात है बड़ी और दिन छोटे होते हैं मकर संक्रांति के बाद दिन महान की अवधि धीरे-धीरे बढ़ना शुरू हो जाती है मकर संक्रांति के बाहर इस घटिया महानता से 40 घंटे तक विशेष पुण्य का रास्ता है ऐसा पुरवा का रास्ता में अंकित है।

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