पांच साल से गर्भवती, धात्री व बच्चों को पहुंचाया जा रहा है पोषाहार
शहरी बाल विकास परियोजना कार्यालय की अनूठी पहल
गोरखपुर, 12 जनवरी 2022। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता निशा मल्ल जेल में बंद गर्भवती, धात्री महिलाओं और बच्चों तक पोषण का संदेश पहुंचा रही हैं। वह समय-समय पर आने वाला पोषाहार जेल में पहुंचाती हैं और परामर्श भी देती हैं। शहरी बाल विकास परियोजना कार्यालय से पांच साल पहले शुरू हुई इस पहल के तहत जेल में भी पोषण की रोशनी पहुंच रही है।
निशा (40) ने करीब 10 साल पहले समेकित बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग में काम शुरू किया था । वह बताती हैं कि जब शहरी बाल विकास परियोजना अधिकारी प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने कार्यभार संभाला तभी से जेल में भी पोषाहार पहुंचाने की पहल हुई। शुरूआती दौर में चुनौतियां आईं। जेल के भीतर के प्रोटोकॉल के कारण पहले जेल के अधिकारी भी हिचकिचाते थे लेकिन धीरे-धीरे सभी ने पहचान लिया और अब कोई रोकटोक नहीं रहती। केवल फोटो खींचने की मनाही है। मोबाइल बाहर जमा हो जाता है। वह बताती हैं कि जेल में इस समय दो गर्भवती, एक धात्री और 10 छोटे बच्चे हैं। यह संख्या हर माह बदलती रहती है क्योंकि कुछ लोग रिहा भी हो जाते हैं।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता निशा मल्ल का कहना है कि गर्भवती, धात्री महिलाओं और शून्य से तीन साल के बच्चों के लिए दाल, दलिया और रिफाइंड दिया जाता है, जबकि तीन से छह साल तक बच्चों के लिए सिर्फ दाल और दलिया दी जाती है । महिलाओं को समझाया जाता कि इस सामग्री की मदद से पूड़ी, हलुआ और अन्य पौष्टिक व्यंजन बना कर खाए जा सकते हैं। धात्री महिलाओं को स्तनपान के साथ पूरक आहार की जानकारी दी जाती है। उन्हें बताया जाता है कि छह माह तक शिशु को सिर्फ स्तनपान करवाना है और इसके बाद दो वर्ष तक स्तनपान के साथ-साथ पूरक आहार भी देना है। गर्भवती को गर्भावस्था में पोषण के महत्व की जानकारी दी जाती है और यह भी बताया जाता है कि बच्चे को पैदा होने पर यथाशीघ्र स्तनपान करवाना है।
शासन से आया दिशा-निर्देश
शहरी बाल विकास परियोजना अधिकारी प्रदीप कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि शासन से इस संबंध में दिशा-निर्देश आया था । पत्र मिलने के बाद पोषहार की उपलब्धता के अनुसार जेल में उसकी आपूर्ति की जाती है। जिला कार्यक्रम अधिकारी हेमंत सिंह की देखरेख में पोषाहार वितरण कार्यक्रम सुचारू तौर पर चल रहा है।
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