आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,
वाराणसी से प्रकाशित हृषीकेश पञ्चाङ्ग के अनुसार 2 नवम्बर दिन मंगलवार को सूर्योदय 6 बजकर 28 मिनट पर और द्वादशी तिथि का मान प्रातःकाल 8 बजकर 35 मिनट तक ,पुनः सम्पूर्ण दिन और रात्रि पर्यन्त त्रयोदशी तिथि दूसरे दिन प्रातः 7 बजकर 14 मिनट तक भी है।इस दिन वैधृति योग ,गर करण और धाता नामक महा औदायिक योग है। धनतेरस ,धन्वन्तरि जयन्ती का आयोजन इसी दिन किया जायेगा।इस दिन प्रदोष व्रत भी है। इसी दिन से दीपावली का महापर्व आरम्भ माना जाता है।यह कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाने वाला पर्व है।यह मुख्य दो रूपो में मनाया जाने वाला पर्व है।प्रथम--धन्वन्तरि जयन्ती के रूप मे।
द्वितीय : धनतेरस के रूप में। देव और असुरों द्वारा सम्मिलित रूप में किए गये समुद्र म॔थन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वन्तरि का प्रकट्य हुआ था। इसलिए इस दिन आयुर्वेद जगत में धन्वन्तरि जयन्ती उत्सव के रूप में मनाई जाती है।आम जन को भी इस दिन भगवान धन्वन्तरि की पूजा करनी चाहिए और अपने स्वास्थ्य और आरोग्यता के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। इस दिन धन के स्वामी कुबेर की पूजा की जाती है। इस दिन धातु के बने वर्तनो को खरीदना आगामी वर्ष के लिए समृद्धिदायक माना जाता है। धनतेरस के दिन सायंकाल यम के निमित्त दीपदान होता है।ऐसा करने से आगामी वर्ष घर में अकाल मृत्यु का भय नही रहता है।धन तेरस से सम्बन्धित और भी लोकाचार जुड़े हुए हैं।।इस दिन घर की साफ -सफाई कर आंगन आदि को धोकर र॔गोलियाॅ बनाई जाती हैं।ऐसी मान्यता है कि इन रंगोलियों से घर में सुख-समृद्धि आती है और घर से नकारात्मक ऊर्जा का निष्कासन होता है।धन तेरस को उधार देना निषिद्ध है। यह भी प्रचलन मे है कि इस दिन धन का अपव्यय नही करना चाहिए।
नरक की यातना और दण्ड से बचने के लिए तथा सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा के लिए प्रत्येक व्यक्ति को इस दिन मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से सन्मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए तथा विगत वर्ष मे किये गये पापों के आकलन करते हुए पाश्चाताप भी करना चाहिए।इससे नरक में जाने से मुक्ति मिलती है।
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