गोरखपुर सिद्ध-संतों की भूमि, गीताप्रेस से सोने में सुगंध और कीर्ति में चार चांद भाईजी ने लगाया : जगद्गुरु शंकराचार्य
भाईजी से श्री जयदयाल जी गोयंदका ने मिलकर गीताप्रेस से जिस साहित्य का प्रकाशन किया, विश्व में इतने उत्कृष्ट साहित्य का मिलना कठिन : स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज
गोरखपुर। सार्वभौम संत भाईजी श्री हनुमान प्रसादजी पोद्दार की तपस्या स्थली गीता वाटिका में शुक्रवार की सायंकाल श्री गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर श्रीमद् जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज का शुभागमन हुआ।
"गोविंद जय जय गोपाल जय जय। राधारमण हरि गोविंद जय जय।।" संकीर्तन कराने के पश्चात् श्री शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि श्री पोद्दारजी मनीषी थे। हमें उनका दर्शन बहुत पहले ऋषिकेश में हुआ। वे बहुत ही विनम्र थे। दर्शन करते ही पांव छूकर प्रणाम करते थे। उनमें वैदुष्य भी था और विनम्रता भी थी। दोनों का सामंजस्य उनके जीवन में उन्होंने और श्री जयदयाल जी गोयंदका ने मिलकर गीताप्रेस के माध्यम से जिस साहित्य का प्रकाशन किया, विश्व में इतने उत्कृष्ट साहित्य का मिलना कठिन है। गोरखपुर सिद्धों की भूमि रही है। गीताप्रेस की स्थापना से सोने में सुगंध गोरखपुर को प्राप्त हुआ और इसकी कीर्ति में चार चांद श्री पोद्दार जी ने लगा दिया।
श्री शंकराचार्य महाराज जी ने धर्म सभा में उपस्थित लोगों को धर्म और अध्यात्म से संबंधित प्रश्न पूछने के लिए आमंत्रित किया तथा उनके प्रश्नों का समुचित शास्त्रसम्मत उत्तर भी दिया।
पूज्य शंकराचार्य जी का स्वागत हनुमान प्रसाद पोद्दार स्मारक समिति के सचिव श्री उमेश कुमार सिंहानिया तथा संयुक्त सचिव श्री रसेन्दु फोगला ने किया तथा उन्हें फल एवं साहित्य अर्पित किया।आज शनिवार को प्रातः 8.45 बजे पूज्य शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज मौर्य एक्सप्रेस से सिंगूर, पश्चिम बंगाल के लिए प्रस्थान किये। इससे पूर्व शंकराचार्य जी ने प्रातः पूजा पाठ कर अपने प्रवास स्थल राजेश सिंह के आवास पर उनके परिजनों और उपस्थित श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया और उन्हें प्रसाद दिया। सायं 6 बजे श्री शंकराचार्य सेवा समिति के कार्यालय पर एक बैठक भी हुई। जिसमें प्रस्ताव पारित कर संगोष्ठी व धर्मसभा की सफलता के लिए सभी का धन्यवाद ज्ञाापित किया गया।
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