नौ दिवसीय देवी की आराधना-उपासना का पर्व 7 से प्रारंभ


शारदीय नवरात्रि में सूर्योदय के समय द्वि-स्वभाव लग्न कन्या प्रबल होती है, घटस्थापना मुहूर्त उपयुक्त होता है। नौ दिवसीय उत्सव देवी दुर्गा के 9 अवतारों को समर्पित किया गया है जिनकी प्रत्येक दिन पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण प्रथम दिवस (प्रतिपदा तिथि) है। इसी दिन घटस्थापना होती है।

घटस्थापना मुहूर्त :

 प्रातः 06:17 से सुबह 07:06 तक

घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त :

सुबह 11:45 से अपराह्न 12:32 तक

घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि को पड़ता है।

नवरात्रि के दौरान अन्य अनुष्ठानों में, घटस्थापना सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। घटस्थापना नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। घटस्थापना देवी शक्ति का आह्वान है। ये घटस्थापना के लिए नियम, दिशानिर्देश और समय प्रदान करने वाले शास्त्रों के अनुसार किया जाना चाहिए।

घटस्थापना के लिए सबसे शुभ समय दिन का पहला एक तिहाई है। जबकि प्रतिपदा, नवरात्रि का पहला दिन प्रचलित है। अगर किसी कारणवश घटस्थापना न हो सके तो अभिजीत मुहूर्त में स्थापना करना चाहिए। चित्रा नक्षत्र के दौरान घटस्थापना और वैधृति योग से बचना चाहिए। घटस्थापना हिंदू धर्म शास्त्र में दोपहर से पहले की जानी चाहिए, जबकि प्रतिपदा प्रचलित है।

शारदीय नवरात्रि में सूर्योदय के समय द्वि-स्वभाव लग्न कन्या प्रबल होती है, घटस्थापना मुहूर्त उपयुक्त होता है। अमावस्या के दौरान घटस्थापना वर्जित है। दोपहर, रात का समय और सूर्योदय के बाद सोलह घाटियों के बाद का समय घटस्थापना के लिए निषिद्ध कारक हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दूर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इन नौ दिनों में मां धरती लोक पर अपने भक्तों के दुख दूर करने आती है। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में शारदीय नवरात्रि शुरुआत होती है। इस बार 7 अक्टूबर से शुरू होकर 15 तारीख को विजय दशमी है।

नवरात्रि इस बार 9 दिन के बजाय 8 दिन के होंगे  

श्री हृषीकेश पंचांग के अनुसार इस बार नवरात्रि 9 दिनों तक नहीं 8 दिनों तक चलेंगे। इस बार दो तिथियां एक साथ पड़ने के कारण एक नवरात्रि घट रहा है और नवरात्रि 8 दिन तक चलेंगा। 7 अक्तूबर से नवरात्रि आरंभ होने वाली हैं। नवरात्रि में मां के नौ स्वरुपों की चौकी सजाकर पूजा की जाती है। नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री के पूजन के साथ घटस्थापना करने का प्रावधान है। मां की चौकी लगाते समय घटस्थापना अवश्य की जाती है। इसके लिए मिट्टी का कुंभ, तांबे या फिर चांदी का लोटा लिया जाता है। उसके ऊपर स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाता है और नारियल स्थापित किया जाता है। विधि-विधान के साथ पूजन करके कलश स्थापित करते हैं। लेकिन क्या आप जानते है कि कलश क्यों स्थापित किया जाता है, स्वास्तिक और नारियल लगाने का क्या महत्व है। 

मिट्टी या बालू की वेदी बनाकर जौ बोने के पीछे क्या है मान्यता...

कलश मध्य स्थान से गोलाकार और मुख छोटा होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कलश के मुख में विष्णुजी, कंठ में महेशजी और मूल में सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जी का स्थान माना गया है। कलश के मध्य स्थान में मातृशक्तियों का स्थान माना गया है। कलश को तीर्थो का प्रतीक मानकर पूजा जाता है। एक तरह से कलश स्थापना करते समय विशेष तौर पर देवी-देवताओं का एक जगह आवाह्नन किया जाता है।

शास्त्रों के अनुसार खाली कुंभ को अशुभ माना गया है। इसलिए कलश में जल भरकर रखा जाता है। भरे हुए कलश को संपन्नता का प्रतीक भी माना जाता है। मान्यता है जल भरे हुए कलश को घर में रखने से संपन्नता आती है। कलश में भरा गया जल मन का कारक माना गया है, कलश के पवित्र जल की तरह हमारा मन भी स्वच्छ और निर्मल बना रहे। ताकि मन में किसी प्रकार की घृणा, क्रोध और मोह की भावना का कोई स्थान न हो। 

                    -पं देवेन्द्र प्रताप मिश्र

                  अखिल भारतीय विद्वत् महासभा, गोरखपुर

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