पूरे देश में कोविड-19 महामारी फैली हुई है। केंद्रीय स्तर पर केंद्र सरकार, राज्य स्तर पर राज्य सरकारें और अपने घरों में जनता इससे निपटने में जुटी है। परंतु अभी और बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है। जहां से यह बीमारी रिसती है, उन छिद्र्रों को हमें ढूंढना पड़ेगा, पहचानना पड़ेगा और बंद करना पड़ेगा
पूरे देश में कोविड-19 महामारी फैली हुई है। केंद्रीय स्तर पर केंद्र सरकार, राज्य स्तर पर राज्य सरकारें और अपने घरों में जनता इससे निपटने में जुटी है। परंतु अभी और बहुत कुछ किये जाने की आवश्यकता है। जहां से यह बीमारी रिसती है, उन छिद्र्रों को हमें ढूंढना पड़ेगा, पहचानना पड़ेगा और बंद करना पड़ेगा, उनका इलाज करना पड़ेगा। समन्वय के कुछ नये सूत्र संभाले बिना, समझे बिना इस लड़ाई में जीत को आसान नहीं बनाया जा सकता।
इस समय कोविड-19 से निपटने के लिए भारत में केंद्र सरकार, स्वास्थ्य व्यवस्थाएं और राज्य सरकारें अपने मोर्चों पर काम कर रही हैं। परंतु लड़ाई सिर्फ कोविड से लड़ने की नहीं है, यह लड़ाई इससे भी आगे जाती है। कोविड-19 के सामुदायिक प्रसार (कम्युनिटी स्प्रेड) के बाद से हानिकारक या खतरनाक कचरा अस्पतालों से, और डिस्पेंसरियों से ही नहीं बल्कि होम आइसोलेशन के कारण घरों से, यानी हर जगह से निकलने लगता है। यह अगला बड़ा खतरा आसन्न है। क्या इस खतरनाक कचरे के समुचित निस्तारण के बिना यह लड़ाई पूरी तरह जीती जा सकती है?
भारत में कूड़ा-कचरा निस्तारण की जिम्मेदारी सभी जगहों पर नगर पालिका/नगर निगमों की है। कचरा प्रबंधन का काम अलग-अलग नगर निगम और पालिकाएं कर रही हैं लेकिन सबका स्तर अलग-अलग हो सकता है। उसके पीछे स्थानीय कारण हो सकते हैं। इस बिंदु पर लड़ाई का एक और मोर्चा उभरता है, वह है समन्वय का। यह समन्वय कौन करेगा। क्या अखिल भारतीय महापौर परिषद को समग्रता से कुछ सोचने की आवश्यकता है, क्या महापौर परिषद कुछ नया कर सकता है जिससे कोविड-19 के विरुद्ध भारत की लड़ाई जीत में तब्दील होने में आसानी हो। दरअसल जितनी बड़ी समस्या कोरोना वायरस की है, उतनी ही बड़ी समस्या खतरनाक कचरे की है। इस लड़ाई को जीतने के लिए जितना जरूरी टीकाकरण है, उतना ही जरूरी कचरा प्रबंधन है। इसके लिए परस्पर समन्वय आवश्यक है। इसलिए यह समन्वय महापौर परिषद के सामूहिक प्रयास के तौर पर होना चाहिए। इनके मानक परिचालन प्रक्रिया (एसओपी) और प्रोटोकॉल के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय को पहल करनी होगी, व्यवस्था और निगरानी के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को कदम उठाना होगा। इसके लिए बजट अड़चनों का भी ख्याल रखना पड़ेगा और राहत व शिथिलता देनी होगी। समाज और निजी क्षेत्र से भी इसमें मदद लेनी होगी।
इस हानिकारक कचरे के खतरे को देखते हुए हमारे सफाई कर्मियों को इसके निस्तारण के बारे में प्रशिक्षित करना सबसे महत्वपूर्ण है। दूसरे, ये सफाईकर्मी, जो समाज के हाशिये पर खड़े कहे जाते हैं, समाज को स्वस्थ रखने के यज्ञ में जुटे हुए हैं, इस यज्ञ के सबसे बड़ी पुरोहित यही हैं। इसलिए इनकी सुरक्षा एक बड़ा बिंदु है जिस पर सरकार को, समाज को सोचना चाहिए। यदि उन्हें पीपीई किट नहीं पहना सकते तो क्या उन्हें दस्ताने दिये जा सकते हैं, उनकी स्वच्छता के लिए साबुन, सैनेटाइजर इत्यादि की व्यवस्था के लिए क्या कोई नेटवर्क काम कर सकता है? क्या महापौर परिषद इस दिशा में कोई कदम उठा सकती है?
इसके समानांतर जनता में जागरुकता का यज्ञ भी चलना चाहिए। यदि किसी भी घर में कोई संक्रमित व्यक्ति है, तो उसकेपूरे कूड़े-कचरे के निस्तारण के लिए क्या लोगों के सहयोग के साथ कोई मार्किंग हो सकती है? चूंकि संक्रमित व्यक्ति का कचरा खतरनाक है, इसलिए उसका पृथक प्रबंधन आवश्यक है। इस दृष्टि से इस कचरे का समुचित निस्तारण हो सके, इसकी व्यवस्था करनी होगी। इस समय कोविड-19 की जांच, बेड, आईसीयू बेड, आॅक्सीजन, रेमिडिसिवर, वेंटिलेटर के इंतजाम भले कर लिये जायें परंतु यदि इतने बड़े देश में खतरनाक कचरे का प्रबंधन और वैक्सीनेशन की व्यवस्था ठीक से नहीं की जाएगी तो ऐसी समस्याएं बार-बार आएंगी, विनाश मचता रहेगा। इस पर नई दृष्टि से सोचने की आवश्यकता है। हमें ऐसे विचारों को आगे बढ़ाना चाहिए और इसमें हम क्या सहयोग कर सकते हैं, इसके लिए नये मंच खड़े करने चाहिए। पूरी व्यवस्था में स्वच्छता कर्मी एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। इस कड़ी के योगदान को हम रेखांकित करें, सम्मानित करें और उन्हें हरसंभव सहयोग दें। सभी के सहयोग और समन्वय से ही यह लड़ाई लड़ी जाएगी और अंतत: जीती जाएगी।
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