संकट समाप्त का सर्वोत्तम व्रत है संकष्टी, गणेश व्रत 31 को



आचार्य पंडित शरद चन्द्र मिश्र ने बताया कि 31जनवरी रविवार को सूर्योदय 6 बजकर 34 मिनट पर, माघ कृष्ण तृतीया तिथि का मान रात्रि 9 बजकर 40 मिनट तक पश्चात चतुर्थी तिथि है। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, शोभन योग और छत्र नामक महाऔदायिक योग भी है। इस दिन चन्द्रोदय रात को 8 बजकर 20 मिनट पर हो रहा है। दूसरे दिन पहली फरवरी को सांयकाल चतुर्थी तिथि सायंकाल 7 बजकर 57 मिनट पर समाप्त हो रहा है। इस दिन चन्द्रोदय के समय पंचमी तिथि होने से पूर्व दिन अर्थात 31 जनवरी को ही संकष्टी चतुर्थी व्रत सम्पन्न किया जायेगा।

पूजन विधि विधान :

गणेश जी के अर्घ्य में जल, पुष्प, सुपाड़ी, अक्षत, फल, चन्दन और दक्षिणा का प्रयोग करना चाहिए। इससे भगवान गणेश प्रसन्न होकर अभीष्ट फल प्रदान करते हैं।

इस व्रत को माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। प्रातः काल स्नान के अनन्तर देवाधिदेव गणेश जी की प्रसन्नता के लिए व्रतोपवास का संकल्प करके दिन भर संयमित रहकर श्रीगणेश जी का स्मरण-चिन्तन एवं भजन करते रहना चाहिए। चन्द्रोदय होने पर चतुर्थी तिथि हो जाय तो गणेश मूर्ति या सुपाड़ी के द्वारा निर्मित सांकेतिक गणेश देवता को चौकी या पीढ़े पर स्थापित करें। गणेश जी के साथ उनके आयुध और वाहन भी होने चाहिए। यदि मृण्णयी (मिट्टी की )मूर्ति हो तो सर्वोत्तम है।अनन्तर षोडशोपचार विधि से भक्तिभाव से पूजन सम्पन्न करे।पुनः मोदक और गुड़ में बने हुए तिल के लड्डू का निवेश अर्पित करें। आचमन कराकर प्रदक्षिणा और नमस्कार करके पुष्पांजलि करनी चाहिए। चन्द्रोदय होने पर चन्द्रमा को विशेषार्घ्य प्रदान करें।

अर्घ्य विधि :

तिथि की अधिष्ठात्री देवी तथा रोहिणीपति चन्द्रमा को कृष्ण पक्ष की चतुर्थी  को गणेश -पूजन के अनन्तर अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। गणेश पुराण के अनुसार चन्द्रोदय काल में गणेश के लिए तीन, तिथि के लिए तीन और चन्द्रमा के लिए सात अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। इस व्रत में तृतीया तिथि से युक्त चतुर्थी तिथि ग्राह्य है। तृतीया के स्वामी गौरी माता और चतुर्थी के स्वामी श्रीगणेश जी है। (चतुथी यदि पंचमी से युक्त है तो वह अग्राह्य है, क्योंकि पंचमी के स्वामी सर्प या नाग देवता है।श्रीगणेश और नागदेव का सम्बन्ध विपरीत होने से यह मान्य नही है।) इस दिन गौरी व्रत भी किया जाता है। अतः इस दिन योगिनी गण सहित गौरी की पूजा करनी चाहिए स्त्रियों को कुन्द पुष्प, कुंकुम, लाल सूत, लाल फूल, महावर,  धूप, दिन, अदरक, दूध, खीर इत्यादि से गौरी की उपासना करनी चाहिए।

व्रत कथा :

सतयुग मे नल नामक एक राजा था। जिसकी दमयन्ती नामक पत्नी थीं। जब राजा नल पर संकट आया और उसका घर आग मे जल गया। सब कुछ खोने के बाद उसे अपनी पत्नी के साथ जगह-जगह भटकना पड़ा। इसमें वह अपने पुत्र से भी पृथक हो गया। इस प्रकार कष्ट प्राप्त करते हुए वे दोनो शरभंग ॠषि के आश्रम मे पहुँचे। और अपनी दुःख भरी कथा सुनाई। इस पर ॠषि ने उन्हे भगवान श्रीगणेश जी के व्रत के बारे मे बताया और संकट के निवारण हेतु श्रीगणेश जी के व्रतार्चन की शिक्षा दी।इस व्रत को दमयन्ती ने सविधि सम्पन्न की और अपने खोये हुए राज्य को प्राप्त की। तभी से इस व्रत की परिपाटी चली आ रही है। ऐसा पुराणों का कथन है।

Comments