कार्तिक पूर्णिमा स्नान और देव दीपावली का पर्व 30 को

30 नवम्बर को सूर्योदय 6 बजकर 43 मिनट पर और पूर्णिमा तिथि का मान दिन मे 2 बजकर 26 मिनट तक तथा रोहिणी नक्षत्र सम्पूर्ण दिन और रात्रि पर्यन्त तक है ।इस दिन औदायिक योग "प्रवर्धमान " है। जो सर्वत्र वृद्धि और उत्थान का सूचक है। ह्वेनसांग के अभिलेख मे भी है देवदीपावली का जिक्र इस दिन का स्नान और दान मनोवांछित फल प्रदान करता है।


 

माहात्म्य

सनातन की मान्यता के अनुसार इस दिन गंगा या पवित्र नदियो मे स्नान तथा सायंकाल दीप दान का विशेष महत्व है।इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार ग्रहण किया था ।ऐसा माना जाता है कि इसी दिन गंगा और गंडकी नदी के संगम पर गज और ग्राह का युद्ध इसी दिन हुआ था।गज की करुणामयी पुकार सुनकर विष्णु ने ग्राह का संहार कर गज की रक्षा की थी ।पुराणों के अनुसार--इसी दिन भगवान शंकर जी ने त्रिपुर नामक राक्षस को भष्म किया था। इसी दिन शिव के प्रकार स्तम्भ से दुर्गारूपिणी पार्वती जी ने महिषासुर का वध करने हेतु शक्ति अर्जित की थीं। इन्ही कारणों से सभी पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा विशेष फलदायी मानी जाती है। इस दिन गंगा या पवित्र नदियो मे स्नान कर श्रद्धालु अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करते है। 

आकाश दीप जलाकर ज्ञान और विद्य…
 

पूजन विधि

कार्तिक मास को प्रातःकाल पवित्र नदी या गंगा को स्नान कर विधिपूर्वक शालिग्राम की पूजा करनी चाहिए। यदि सम्भव हो तो सत्यनारायण व्रत कथा का भी आयोजन करे। सायंकाल पूर्णिमा को देव मन्दिरो, चौराहों, गलियों, पीपल के वृक्षो और तुलसीदास के पौधों के पास दीपक जलायें और गंगा के जल या पवित्र नदियों के जल में या नदी के तट पर दीपदान करें। इस तिथि में ब्राह्मणों को दान देने, भोजन कराने, गरीबों को भिक्षा देने तथा बड़ी से आशीर्वाद प्राप्त करने का विधान है।
 

पौराणिक संदर्भ

पुराणों मे कहा गया है कि इस तिथि पर शिव जी ने त्रिपुर नामक राक्षस वध किया। एक बार त्रिपुर नामक राक्षस ने एक लाख वर्ष तक प्रयागराज मे घनघोर तप किया। इस तप के प्रभाव से सब चराचर प्राणी और देवता भयभीत हो गये। अन्त मे सब देवताओं ने मिलकर योजना बनाई कि अप्सराओं को भेजकर उसका तप भंग करवा दिया जाय। पर उन्हे सफलता न मिली। यह देखकर अन्त मे ब्रह्मा जी स्वयं आये और उससे वर मांगने के लिए कहें। उसने मनुष्य और देवताओं द्वारा न मारे जाने का वरदान मांग लिया। ब्रह्मा जी के इस वरदान से त्रिपुर तीनों लोकों मे अघोरी अत्याचार करने लगा। देवताओं के षडयन्त्र से उसने एक बार कैलाश पर्वत पर कड़ाई कर दी। विवाद और त्रिपुर में भयंकर युद्ध हुआ। अन्त में शिव जी ने ब्रह्मा और विष्णु की सहायता से उसका वध कर दिया। तब से इस दिन का महत्व बढ़ गया, इस दिन त्रिपुरोत्सव भी होता है।
 

देवदीपावली की परम्परा

माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा को देवतागण दीपावली मनाने पृथ्वी पर आते है। मान्यता है कि त्रिपुर के नाश से प्रसन्न होकर देवताओं ने काशी मे पंचगंगा घाट पर दीपोत्सव का आयोजन किया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार काशी के राजा देवदास ने अपने राज्य मे देवताओं को प्रतिबन्धित कर दिया था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन रूप बदलकर भगवान शिव काशी के पंचगंगा घाट पर गंगा स्नान और अर्चन किये। जब यह बात राजा देवदास को मालूम हुआ तो उन्होने प्रतिबन्ध को समाप्त कर दिया। इस दिन प्रसन्न होकर देवताओं ने दीपावली मनाई। काशी मे देवदीपावली का जिक्र ह्वेनसांग ने भी किया है जो राजा हर्षवर्धन के समय मे भारतवर्ष का दौरा किया था।
व्रतोद्यापन प्रकाश मे कहा गया है कि पूर्णिमा से एक दिन पूर्व ही इस व्रत का उद्यापन किया जाय। अर्थात शुक्ल चतुर्दशी को गणपति-मातृका, नान्दीश्राद, पुण्याहवाचन, सर्वतोभद्र और ग्रह का स्थापन, पूजन और हवन सम्पन्न करें। इसके लिए सुवर्ण की भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण कर सर्वतोभद्र मण्डल पर रखेंं। इस मूर्ति की प्रतिष्ठा कर पूजन के अनन्तर रात्रि जागरण कर भगवत् नाम संकीर्तन करे। पुराणों का वाचन करेंं। और द्वितीय दिन अर्थात पूर्णिमा के दिन गोदान, शय्यादान, ब्राह्मण भोजन (30 जोड़ा-जोड़ी) और व्रतविसर्जन कर अपने कुटुम्ब को भी भोजन कराये।
इस तिथि को ब्रह्मा, विष्णु  शिव  अंगिरा और आदित्य आदि ने महापुनीत पर्व प्रमाणित किया है। इस दिन कृत्तिका नक्षत्र होने से महाकार्तिकी के रूप मे प्रसिद्धि है। इस वर्ष पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 29 नवम्बर को दिन मे 12 बजकर 33 मिनट से ही प्रारम्भ हो गया है। इस समय कृत्तिका नक्षत्र विद्यमान है। अतः यह महाकार्तिकी के रूप मे मान्य रहेगाा। 30 नवम्बर को रोहिणी नक्षत्र है। अतः वृष राशि पर चन्द्रमा होने से इसका महत्व और भी अभिवृद्धि को प्राप्त है। भगवान का मत्स्यावतार इसी पूर्णिमा के दिन सायंकाल हुआ था। इसलिए इस दिन दिये दिनादिकों का सफल दस यज्ञ के समतुल्य रहेगा। इस दिन का स्नान पुष्कर तीर्थ मे हजारो बार स्नान के बराबर फल देने वाला है। जो इस दिन स्नान और दीप दान करता है, उसे पुनर्जन्म का कष्ट नही होता है। इस दिन भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के दर्शन का भी अत्यन्त महत्व है। 

आचार्य शरदचन्द मिश्र, रीलीजीयस स्कालर्स वेलफेयर सोसायटी गोरखपुर।

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