शरद पूर्णिमा की रात आकाश से होगी अमृत वर्षा, जाने पूजा विधि

- शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर शुक्रवार को है इस रात्रि को खीर चंद्रमा की चांदनी में रखकर। प्रातः काल खीर का प्रसाद खाने से घर मेंआरोग्यता आती है।



अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा को काफी महत्व दिया जाता है। इस पूर्णिमा के बाद से ही हेमंत ऋतु का आरंभ हो जाता है और धीरे- धीरे सर्दी का मौसम शुरू हो जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है।


 


ऐसे में इस साल यानि 2020 में शुक्रवार 30 अक्टूबर की रात शरद पूर्णिमा की रात है। आज चंद्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। इस कारण यह तिथि विशेष रूप चमत्कारी मानी गई है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन चंद्रमा की किरणों में रोगों को दूर करने की क्षमता होती है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात आकाश से अमृत वर्षा होती है। ऐसे में लोग इसका लाभ लेने के लिए छत पर या खुले में खीर रखकर अगले दिन सुबह उसका सेवन करते हैं। कुछ लोग चूड़ा और दूध भी भिंगोकर रखते हैं।


 ु


व्रत मुहूर्त


अक्टूबर 30, 2020 को 17:47:55 से पूर्णिमा आरम्भ


अक्टूबर 31, 2020 को 20:21:07 पर पूर्णिमा समाप्त


 


 पूर्णिमा पूजा विधि 


1. शरद पूर्णिमा के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान अवश्य करें।


2. इसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर माता लक्ष्मी की मुर्ति या तस्वीर स्थापित करें और उन्हें उन्हें लाल पुष्प, नैवैद्य, इत्र, सुगंधित चीजें चढ़ाएं। आराध्य देव को सुंदर वस्त्र, आभूषण पहनाएँ। आवाहन, आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी और दक्षिणा आदि अर्पित कर पूजन करें।


3.यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद माता लक्ष्मी के मंत्र और लक्ष्मी चालीसा का पाठ अवश्य करें और उनकी धूप व दीप से आरती उतारें।


4. इसके बाद माता लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं और किसी ब्राह्मण को इस दिन खीर का दान अवश्य करें।


5. रात्रि के समय गाय के दूध से बनी खीर में घी और चीनी मिलाकर आधी रात के समय भगवान भोग लगाएं।


6. रात्रि में चंद्रमा के आकाश के मध्य में स्थित होने पर चंद्र देव का पूजन करें तथा खीर का नेवैद्य अर्पण करें।


7. रात को खीर से भरा बर्तन चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें और सबको प्रसाद के रूप में वितरित करें। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की रोशनी में खीर अवश्य रखें और अगले दिन उसे पूरे परिवार के साथ मिल बांटकर खाएं।


8. पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुननी चाहिए। कथा से पूर्व एक लोटे में जल और गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली व चावल रखकर कलश की वंदना करें और दक्षिणा चढ़ाएं।


9. इस दिन भगवान शिव-पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा होती है।


 


शरद पूर्णिमा का महत्त्व


अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं में पूर्ण होता है।माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा कि किरणों से अमृत बरसता है। इस दिन की चांदनी सबसे ज्यादा तेज प्रकाश वाली होती है। 


 


शरद पूर्णिमा को कोजोगार पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी विचरण करती हैं। इसलिए इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने से उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में कभी भी धन की कोई कमीं नहीं होता है।


पं राजेश कुमार मिश्र, भारतीय विद्वत महासंघ


Comments