महर्षि वाल्मीकि दस्यु से बने आदिकवि, नारद मुनि से मिलने के बाद बदला इनका जीवन

प्राचीन कथाओं के अनुसार रत्नाकर (महर्षि वाल्मीकि) ने कठोर तप किया था जिस कारण उनका नाम महर्षि वाल्मीकि पड़ गया। एक समय महर्षि वाल्मीकि ध्यान में इनते लीन हो गए की उनके पूरे शरीर पर दीमकों ने अपना घर बना लिया। जब वाल्मीकि जी की साधना पूरी हुई तो वे दीमकों के घर से बाहर निकले, संस्कृत में दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता है, तभी से उनका नाम महर्षि वाल्मीकि पड़ गया।


 


रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का जन्म महाभारत के पूर्व है



आचार्य पंडित शरद चन्द्र मिश्र,


गोरखपुर। महर्षि वाल्मीकि की जयन्ती 31 अक्टूबर 2020, शनिवार को है। प्राचीन परम्परा और अभिलेखों के आधार पर यह मान्यता है कि महर्षि का जन्म आश्विन मास की पूर्णिमा को हुआ था। उनका बचपन का नाम रत्नाकर था और उनका पालन-पोषण जंगल मे रहने वाली भील जाति मे हुआ था। जिस कारण उन्होंने मीलों की परम्परा को अपनाया और अपनी आजीविका के लिए डांकू बन गये। वे प्रारम्भ मे अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए राहगीरों को लूटते थे और जरूरत होने पर उनकी हत्या भी कर देते थे। इस प्रकार वे अपने पापों का घड़ा भर रहे थे। 


कहा जाता है कि एक दिन नारद मुनि जंगल से गुजर रहे थे। उन्हे देखकर रत्नाकर ने उन्हे बन्दी बना लिया। उस समय नारद ने उनसे पूछा कि तुम ऐसा पाप क्यों कर रहे हो? रत्नाकर ने उत्तर दिया-"अपने परिवार के जीवन यापन के लिए।" तब नारद ने पूछा कि जिस परिवार के लिए तुम पाप कर रहे हो, क्या वह परिवार तुम्हारे पापों के फल को वहन करेगा? इस पर रत्नाकर ने जोश से कहा- "हाँ बिलकुल करेगा। मेरा परिवार सदैव मेरे साथ खड़ा रहेगा। "नारद मुनि ने उससे कहा-" एक बार उनसे पूछ तो लो, अगर वे हाॅ कहते है तो मैं अपना सारा धन तुम्हे दे दूंगा। -"रत्नाकर ने जब अपने परिवार जनों और परिजनों से पूछा तो किसी ने हामी न भरी। इस बात पर उसको गहरा आघात लगा। और तभी से वे दुराचारियों के इस मार्ग को छोड़कर तप का मार्ग चुना, इसके फलस्वरूप उन्हे ज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्होंने संस्कृत भाषा में रामायण महाकाव्य की रचना की। इस प्रकार जीवन की एक घटना ने डांकू रत्नाकर को महर्षि वाल्मीकि में परिवर्तित कर दिया।यह भी कहा जाता है कि वे भील जाति के नही थे। वे प्रणेता के पुत्र थे। बचपन में एक भीलनी ने रत्नाकर को चुरा लिया था, जिस कारण से उनका पालन पोषण भील जाति मे हुआ और वे डांकू बने।


 


कुत्सित जीवन को परित्याग कर नये पथ का किया चयन




रत्नाकर को अपने पापों का आभास हुआ तो उन्होंने कुत्सित जीवन का परित्याग कर नये पथ का चयन किया। लेकिन नये पथ का उन्हें कोई ज्ञान न था। नारद जी से उन्होंने सुगति का मार्ग पूछा, तब नारद जी ने उन्हे राम नाम के जप की सलाह दी। परन्तु राम का नाम मरा में बदल गया, जिनके कारण उनका शरीर दुर्बल हो गया और उनके शरीर पर चींटिया लग गयी। वाल्मीकि (बीमौटी) की मिट्टी शरीर पर चढ़ गया। शायद यही उनके पापों का भोग था। रत्नाकर के शरीर पर वाल्मीकि की मिट्टी चढ़ाने के कारण उनका नाम वाल्मीकि पड़ा। इस कठिन तपस्या से उन्होंने ब्रह्म देव का ज्ञान प्राप्त कर लिया और अन्तर्ज्ञान से रामायण की रचना की।



वाल्मिकी संस्कृत रामायण के रचयिता आदि कवि वाल्मीकि जी हैं। उन्होंने देवभाषा में इसकी रचना की। कुछ लोग इनको निषाद जाति का कहते हैं।रामायण एक महाकाव्य है जो राम के जीवन के माध्यम से हमे जीवन के सत्य और कर्तव्य से परिचित कराता है। आदि कवि "आदि" और "कवि" के मेल से बना है। आदि का अर्थ है प्रथम और कवि का अर्थ है काव्य का रचयिता। ऐतिहासिक दृष्टि से देखने पर अवगत होता है कि महर्षि वाल्मीकि ने ही संस्कृत भाषा में प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना की है। रामायण चौबीस हजार श्लोकों मे लिखा गया है।एक बार वाल्मीकि क्रौंच पक्षी के एक जोड़े को निहारती रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप मे लीन था। तभी उन्होने देखा कि बहेलिया ने क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में नर का बन कर दिया। इस पर मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके विलाप को सुनकर वाल्मीकि की करूणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से यह श्लोक फूट पड़ा-जिसका आशय इस प्रकार है- "हे दुष्ट! तुमने प्रेम से मग्न कौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे भी कभी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नही होगी। तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।" इसके बाद उन्होंने महाकाव्य रामायण की रचना की और अमर हो गये। अपने रामायण महाकाव्य में उन्होंने अनेक घटनाओं के समय सूर्य, चन्द्रमा और नक्षत्रों की स्थिति का वर्णन किया है। इससे ज्ञात होता है कि वे ज्योतिष और खगोल विद्या के भी ज्ञाता थे। अपने वनवास काल में भगवान राम वाल्मीकि के आश्रम मे भी गये थे। वाल्मीकि को भगवान राम के जीवन में घटित प्रत्येक घटना का ज्ञान था। सतयुग, त्रेता और द्वापर -तीनों कालों में वाल्मीकि का उल्लेख मिलता है इसलिए वाल्मीकि को सृष्टि कर्ता भी कहते हैं। रामचरित मानस के अनुसार जब राम वनगमन कर रहे थे तो आदिकवि को दण्डवत किये थे।महाभारत काल मे भी वाल्मीकि का वर्णन मिलता है। जब पाण्डव कौरवों से युद्ध जीते, तो द्रौपदी यज्ञ करती है। जिसके सफल होने के लिए शंख का बजाना आवश्यक था। यदि शंख न बजता तो सभी द्वारा प्रयास करने पर भी यज्ञ सफल न होता। सभी ने शंख बजाने का प्रयास किया परन्तु शंख ध्वनि न हुई। श्रीकृष्ण के कहने पर सभी वाल्मीकि के पास जाकर प्रार्थना करते हैं तो शंख स्वयं ही बजने लगता है और द्रौपदी का यज्ञ सफल हो जाता है। इस घटना को कबीर ने स्पष्ट किया है- 


"सुपच रूप धर सतगुरू आये।पांडवो के यज्ञ में शंख बजाये।।"



रामायण महाकाव्य की ऐतिहासिक वृद्धि और संरचना परतों को जानने के लिए कई प्रयास किये गये। इतिहासकारों के अनुसार यह ईसा से हजारों वर्ष पूर्व और महाभारत के पूर्व का ग्रन्थ है। महाभारत और रामायण दोनो बौद्ध धर्म के बारे में मौन हैं।रामायण में महाभारत के कथानकों का उल्लेख नही हैं। परन्तु महाभारत मे रामायण के कथा का उल्लेख है। इससे सिद्ध होता है कि रामायण की रचना महाभारत और बौद्धों की उत्पत्ति से पूर्व ही है। महाभारत में जैन, शैव और पाशुपत आदि परम्पराओ का वर्णन है। भाषा शैली की दृष्टिकोण से अवगत होते है कि रामायण का प्रथम और अन्तिम काण्ड सम्भवतः बाद मे जोड़ा गया है। अध्याय दो से सात तक इस बात पर जोर दिया गया है कि राम भगवान विष्णु के अवतार थे। उनके अवतार का उद्देश्य मृत्यु लोक में मानव जाति के लिए मार्गदर्शन प्रदान करना था। अन्ततः राम ने राक्षस जाति के राजा रावण का वध किया और धर्म की स्थापना की।


आचार्य पं शरदचन्द मिश्र, अध्यक्ष-रीलीजीयस स्कालर्स वेलफेयर सोसायटी गोरखपुर।


Comments