लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल जयन्ती पर आॅनलाइन छायाचित्र प्रदर्शनी

 


गोरखपुर।  राजकीय बौद्ध संग्रहालय, (संस्कृति विभाग, उ0प्र0) द्वारा शनिवार को भारत रत्न लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल जयन्ती ‘‘राष्ट्रीय एकता दिवस‘‘ के अवसर पर आॅनलाइन छायाचित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। जिसे सोशल मीडिया पर संग्रहालय के यूट्यूब चैनल, फेसबुक, ट्वीटर इन्स्टाग्राम तथा व्हाट्स एप्प के माध्यम से देखा जा सकता है।


 उक्त अवसर पर संग्रहालय के उप निदेशक डाॅ0 मनोज कुमार गौतम ने कहा कि लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के देश भक्तों में एक अमूल्य रत्न थे। वे भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के अक्षय शक्ति स्तम्भ थे। आत्म त्याग, अनवरत सेवा तथा अन्य दूसरों को दिव्य शक्ति की चेतना देने वाले एक युग पुरूष थे। उनका जीवन सदैव यश स्तम्भ की तरह अमर ज्योति बन हम सभी भारत वासियों को नवचेतना जागृत करता रहेगा। लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल मितभाषी, अनुशासनप्रिय और कर्मठ व्यक्ति के कठोर व्यक्तित्व में विस्मार्क जैसी संगठन कुशलता, कौटिल्य जैसी राजनीतिक सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी । यहाँ पर हम पूरी दृढ़ता के साथ यह कह सकते हैं कि वास्तव में सरदार पटेल आधुनिक भारत के शिल्पी थे। सरदार पटेल ने अदम्य उत्साह, असीम शक्ति एवं मानवीय समस्याओं के प्रति व्यवहारिक दृष्टिकोण से निर्भय होकर विल्कुल नवजात गणराज्य की प्रारम्भिक कठिनाईयों का समाधान अद्भूत बुद्धिमत्ता से करते हुए विश्व के राजनीतिक मानचित्र में उन्होनें अमिट स्थान बना लिया। 


 सरदार वल्लभ भाई पटेल इंग्लैण्ड में बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी करने के उपरान्त 13 फरवरी, 1913 ई0 को बम्बई आये और अगले ही दिन अहमदाबाद के लिये चले गये और यहीं से सरदार पटेल भारतीय सामाजिक एवं राजनीतिक क्षे़त्र में कार्य करने के लिये सक्रिय हो गये। सरदार पटेल ने स्थानीय आन्दोलन हो या राष्ट्रीय आन्दोलन सभी में दृढ़ संकलपता के साथ कार्य किया। इन्होने जिन आन्दोलनों में प्रतिनिधित्य या कार्य किया उनमें प्रमुख रूप से - 1918 में खेड़ा सत्याग्रह, 1919 का रोलेक्ट एक्ट, 1920 में असहयोग आन्दोलन एवं 1923 में झण्डा सत्याग्रह तथा 1928 ई0 बारडोली इत्यादि सत्याग्रहों में प्रमुख एवं अहम भूमिका निभाई जिसके लिये समूचा देश सरदार पटेल का कृतज्ञ रहेगा।


स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देशी रियासतों के एकीकरण का स्थाई हल निकालना एक गम्भीर चुनौती थी। ब्रिटीश भारत में न केवल गवर्नरों के अधीन प्रान्त थे बल्कि छोटी-बड़ी 565 रियासतें थीं जिनके पास लगभग 715964 वर्गमील का क्षेत्रफल था और सन् 1941 की जनगणना के अनुसार लगभग 93189233 की जनसंख्या इन रियासतों में रहती थी। राजनैतिक शक्ति के मामले में ये रियासतें एक दूसरे से भिन्न थीं और ब्रिटिश सरकार की अधिसत्ता से पूर्ण थीं। ऐसे में इनके एकीकरण का कार्य वास्तव में लोहे के चने चबाने जैसा था। इस कार्य को करने के लिए अन्य कई नेता प्रयास कर रहे थे किन्तु कोई सफल नहीं हुआ। अदम्य साहस, बुद्धिमत्ता और अन्तःकरण से निर्भिक एवं सच्चे देश भक्त सरदार पटेल ने देश की विभिन्न रियासतों का विलीनीकरण का कार्य किया और भारतीय प्रशासन को निपुणता एवं स्थायित्व प्रदान किया। 


 सरदार पटेल स्वयं स्पष्टवादी थे तथा दूसरों से भी स्पष्ट व्यवहार चाहते थे। उनका जीवन प्रारम्भ से अन्त तक एक खुली पुस्तक के समान था। उनकी राजनीति नैतिक स्तर पर आधारित थी। विरोधी के हृदय को जीतना सरदार पटेल की एक विशिष्ट कला थी और अपना पक्ष ऊपर रखते हुए अपने शत्रु से भी काम ले लेते थे। भारतीय स्वतंत्रता के साथ देशी राजाओं को दोनो उपनिवेशों (भारत व पाकिस्तान) से अलग रहने की छूट से अनेक देशी राजा सरदार पटेल के शत्रु बन गये थे किन्तु सरदार पटेल ने उनके दिलों को जीतकर देशी राजाओं को भारतीय संघ में सम्मिलित करके इतिहास में एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। 


 सरदार पटेल 7 अक्टूबर 1950 को जब अन्तिम बार हैदराबाद गये तो वहाँ उन्हें हैदराबाद सिकन्दराबाद की म्यूनिसिपलिटी तथा हिन्दी प्रचार सभा द्वारा मानपत्र दिया गया। उसके प्रति आभार प्रकट करते हुए सरदार ने कहा था -’’मुझे मानपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं है और ना ही इसका कोई समय आया है। जब आदमी दुनिया छोड़कर चला जाता है, असल मानपत्र तो उसके बाद मिलता है, क्योंकि कोई आदमी आखिरी दिन तक कोई गलती न करे, तब उसकी इज्जत रहती है। लेकिन यदि आखिरी उम्र में दिमाग पलट जाये तो सारी मेहनत और त्याग खत्म हो जाता है। इसलिये हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिये कि आखिरी दम तक हम शुद्ध और निस्वार्थ भाव से सेवा करते रहें, ऐसी ताकत हमको मिले।’’ सरदार पटेल अपने उक्त विचार के दो माह पश्चात 12 दिसम्बर को बम्बई गये और 15 दिसम्बर को 1950 को प्रातः 9 बजकर 37 मिनट पर दिव्य शक्ति की चेतना देने वाला यह सूरज अस्त हो गया। निर्विवाद रूप से हम कह सकते हैं कि लौह पुरूष सरदार बल्लभ भाई पटेल मन, वचन तथा कर्म से एक सच्चे देश भक्त थे। कर्म उनके जीवन का साधन था। समूचा राष्ट्र लौह पुरूष का हर दौर में हमेशा हमेशा कृतज्ञ रहेगा। इनके आदर्शों एवं सिद्वान्तों को अपनाये बगैर हिन्दुस्तान का नवनिर्माण सम्भव नहीं होगा। सरदार पटेल वास्तव में राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता के प्रतिमूर्ति थे।


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