पंडित देवेंद्र प्रताप मिश्र,
प्रदोष व्रत के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से इंसान को दो गौ-दान से मिलने जितना फल प्राप्त होता है। प्रदोष व्रत को एक अत्यंत शुभ और बेहद ही फलदायी व्रत बताया गया है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत का सीधा संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से होता है। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को ये व्रत किया जाता है।
कहते हैं कि प्रदोष के दिन जो कोई भी इंसान सच्चे मन और पूरी निष्ठा के साथ भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान, उनकी पूजा-अर्चना करता है, उसे भगवान की असीम कृपा अवश्य प्राप्त होती है, और उनकी सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। प्रदोष व्रत की पूजा त्रयोदशी तिथि की शाम में किये जाने का विधान बताया गया है।
प्रदोष व्रत (अधिक) शुभ मुहूर्त
सितम्बर 29, 2020, मंगलवार
शाम 06 बज-कर 16 मिनट से रात 08 बज-कर 40 मिनट तक
आश्विन, शुक्ल त्रयोदशी
प्रारम्भ – 08:58 रात, सितम्बर 28
समाप्त – 10:33 रात, सितम्बर 29
प्रदोष व्रत पूजन विधि
प्रदोष व्रत की पूजा में हमेशा सफ़ेद या हलके रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
सुबह उठकर स्नानादि करें और फिर भगवान शिव के मंदिर जाकर शिवलिंग का अभिषेक करें। अगर मंदिर नहीं जा सकते हैं तो, आप घर पर ही भगवान शिव का अभिषेक कर सकते हैं।
इस दौरान आपको भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का भी जाप करना चाहिए।
इस दिन आपको भगवान शिव के ऊपर बेलपत्र चढ़ाने चाहिए।
इस दिन प्रदोष व्रत की कथा भी करना बेहद फ़लदायी बताया गया है।
भगवान शिव को भोग चढ़ाएं और पूजा के बाद इसे सभी लोगों में ज़रूर बांटे।
प्रदोष की पूजा में इस बात का रखें खास ख्याल
प्रदोष व्रत में इस बात का ख़ास ख़ास ख्याल रखें कि इस दिन सुबह और शाम दोनों ही समय पूजा अवश्य करनी चाहिए।
इसके अलावा इस दिन का व्रत निर्जला रखा जाता है।
इसके अलावा यहाँ जानने वाली बात यह भी है कि प्रदोष व्रत को कुल ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखा जाना चाहिए और इसके बाद इसका विधि विधान उद्यापन करना होता है।
कहा जाता है कि, अलग-अलग वार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत का महत्व भी अलग-अलग होता है। ऐसे में अगर प्रदोष व्रत मंगलवार को पड़ता है तो इस दिन व्रत रखने से इंसान सभी तरह के रोग से छुटकारा पा सकता है, और इंसान को स्वास्थ्य सम्बन्धी कोई परेशानी भी नहीं होती है। ऐसे में अगर आपको भी लम्बे समय से कोई स्वास्थ्य सम्बंधी परेशानी है तो आपको भी इस दिन व्रत अवश्य रखना चाहिए।
महत्व
कहा जाता है कि प्रदोष व्रत रखने से इंसान के समस्त दुःख और कष्ट अवश्य दूर हो जाते हैं। इसके अलावा जो कोई भी मनुष्य प्रदोष व्रत रखता है उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है। इसके अलावा इस व्रत के बारे में यह भी कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से इंसान को दो गौ-दान से मिलने जितना फल प्राप्त होता है।
इस व्रत के माध्यम से इंसान भगवान शिव की पूजा करके अपने पापों का प्रायश्चित कर सकता है। ये व्रत अन्य सभी व्रतों से ज्यादा शुभ और फलदायी बताया गया है, जिसके माध्यम से इंसान अपने जीवन के सभी पापों से छुटकारा पा सकता है।
व्रत कथा
प्राचीन काल में एक गरीब पुजारी हुआ करता था। उस पुजारी की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए अपने बेटे को साथ लेकर भीख मांगती थी और शाम को घर वापस आ जाती थी। एक दिन इसी दौरान उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई। राजकुमार के पिता की मृत्यु हो गई थी जिसके चलते वह भी दर-दर भटकने के लिए मजबूर हो गए थे। राजकुमार की यह हालत पुजारिन से देखी नहीं गई। ऐसे में वो राजकुमार को अपने घर ले आयीं और उन्हें अपने पुत्र की तरह ही प्यार करने लगी।
एक दिन पुजारी की पत्नी अपने दोनों पुत्रों के साथ शांडिल्य ऋषि के आश्रम में गई। वहां उन्होंने भगवान शिव जी के प्रदोष व्रत की कथा सुनी, पूजन विधि जानी और घर आकर प्रदोष व्रत करने लगी। एक समय की बात है दोनों बालक वन में घूम रहे थे। कुछ देर बाद पुजारी का बेटा तो घर लौट आया लेकिन राजकुमार वन में ही रह गए। तब राजकुमार ने गंधर्व कन्याओं को वहां खेल खेलते हुए देखा और उनसे बात करने लग गए। उनमें से एक कन्या का नाम था अंशुमती।
उस दिन राजकुमार बेहद देरी से घर लौटे। राजकुमार फिर दूसरे दिन उसी जगह पर गए। उस वक्त अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी। अंशुमती के माता पिता ने राजकुमार को पहचान लिया और उनसे कहा कि आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार हैं ना? आपका नाम धर्म गुप्त है?
अंशुमती के माता-पिता को राजकुमार पसंद आ गए। उन्होंने कहा कि शिव जी की कृपा से हम अपनी पुत्री का विवाह आपके साथ कराना चाहते हैं, क्या आप इस विवाह के लिए तैयार हैं? राजकुमार ने हां कर दिया। इसके बाद राजकुमार और कन्या का विवाह संपन्न हुआ।
कुछ समय बाद राजकुमार ने गन्धर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला किया और युद्ध के बाद विजय हासिल कर ली। जिसके बाद अपनी पत्नी के साथ वहां राज करने लगे। इसके बाद उस महल में पुजारी की पत्नी और उसके पुत्र को आदर के साथ लेकर आया गया और उन्हें साथ रखने की बात उठाई। तब पुजारी की पत्नी और उनके पुत्र के समस्त दुख एवं दरिद्रता दूर हो गई और खुशी से सभी सुख-सुविधाओं के साथ अपना जीवन व्यतीत करने लगे।
एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से पूछा तब राजकुमार ने अंशुमती को अपने जीवन की पूरी बात सुनाई और प्रदोष व्रत का महत्व और इस व्रत से मिलने वाले फल के बारे में बताया। माना जाता है कि उसी दिन से प्रदोष व्रत की प्रतिष्ठा और महत्व बढ़ गया और लोग प्रदोष व्रत को करने लगे।
-पं देवेन्द्र प्रताप मिश्र, कोषाध्यक्ष - अखिल भारतीय विद्वत महासभा
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