शिव का नाम जापने मात्र से समस्त कुल का उद्धार

श्रावण मास में शिव नाम का विशेष महत्व


श्रावण मास में जो भक्त भगवान शिव की उपासना करते हैं, वे धन्य हैं, कृतार्थ हैं, उनका देह धारण सफल है तथा उनके समस्त कुल का उद्धार हो जाता है। 



गोरखपुर। आचार्य पंडित कैलाश पति त्रिपाठी के अनुसार जिनके मुख में भगवान शिव का नाम है, जो अपने मुख से सदाशिव और शिव इत्यादि नामों का उच्चारण करते रहते हैं, पाप उनका उसी तरह स्पर्श नही करते, जैसे खदिर-वृक्ष के अंगार को छूने का साहस कोई प्राणी नही कर सकते। 'हे शिव आपको नमस्कार है' (शिवाय नमस्तुभ्यम्) ऐसी बात जब मुँह से निकलती है, तब वह मुख समस्त पापों का विनाश करने वाला पावन तीर्थ बन जाता है। जो मनुष्य प्रसन्नता पूर्वक उस मुख का दर्शन करता है, उसे निश्चय ही तीर्थसेवनजनित फल प्राप्त होता है।



आचार्य त्रिपाठी ने बताया कि शिव का नाम, विभूति (भस्म) तथा रुद्राक्ष - ये तीनो त्रिवेणी के समान परमपुण्यमय माने गये हैं। जहाँ ये तीनो शुभतर वस्तुएँ सर्वदा रहती हैं उसके दर्शन मात्र से मनुष्य त्रिवेणी-स्नान का फल पा लेता है। भगवान शिव का नाम 'गंगा' है, विभूति 'यमुना' मानी गया है तथा रुद्राक्ष को 'सरस्वती' कहा गया है। इन तीनो की संयुक्त त्रिवेणी समस्त पापों का विनाश करने वाली है। इन तीनो की महिमा को सदसद्विलक्षण भगवान महेश्वर के बिना दूसरा कौन भलीभाँति जानता है।



आचार्य ने बताया कि इस ब्रह्माण्ड में जो कुछ है, वह सब तो केवल महेश्वर ही जानते हैं। 'शिव' इस नानारूपी दावानल से महान पातकरूपी पर्वत अनायास ही भस्म हो जाता है- यह सत्य है, इसमे संशय नही है। पापमूलक जो नाना प्रकार के दुख हैं, वे एक मात्र शिवनाम से ही नष्ट होने वाले हैं । दूसरे साधनों से सम्पूर्ण यत्न करने पर भी पूर्णतया नष्ट नही होते हैं। जो मनुष्य इस भूतल पर सदा भगवान शिव के नामों के जप मे ही लगा हुआ है,वह वेदों का ज्ञाता है, वह पुण्यात्मा है, वह धन्यवाद का पात्र है तथा वह विद्वान माना गया है। जिनका शिवनाम जप मे विश्वास है, उनके द्वारा आचरित नाना प्रकार के धर्म तत्काल फल देने के लिए उत्सुक हो जाते हैं। भगवान शिव के नाम से जितने पाप नष्ट होते हैं उतने पाप मनुष्य इस भूतल पर कर नही सकते।



पातकानि विनश्यन्ति यावन्ति शिवनामत:।


भुवि तावन्ति पापानि क्रियन्ते न नरैर्मुने।।


आचार्य ने बताया जो शिवनामरूपी नौका पर आरूढ़ हो संसार रूपी समुद्र को पार करते हैं, उनके जन्म मरणरूप संसार के मूलभूत पातकरूपी पादपों का शिवनामरूपी कुठार से निश्चय ही नाश हो जाता है, जो पापों के दावानल से पीड़ित हैं, उन्हे शिवनामरूपी अमृत का पान करना चाहिये। 



पापों के दावानल से दग्ध होने वाले लोगों को उस शिव नामामृत के बिना शान्तिपाठ नही मिल सकती। जो शिवनामरूपी सुधा की वृष्टिजनित धारा में गोते लगा रहे हैं, वे संसार रूपी दावानल के बीच मे खड़े होने पर भी कदापि शोक के भागी नही होते। जिन महात्माओं के मन मे शिवनाम के प्रति बड़ी भारी भक्ति है, ऐसे लोंगों की सहसा और सर्वथा मुक्ति होती है। जिसके मन मे भगवान शिव के नाम के प्रति कभी खण्डित न होने वाली असाधारण भक्ति प्रकट हुई है, उसी के लिए मोक्ष सुलभ है। जो अनेक पाप करके भी भगवान शिव के नाम जप में आदर पूर्वक लग गया है, वह समस्त पापों से मुक्त हो ही जाता है। इसमें संशय नहीं है। जैसे वन में दावानल से दग्ध हुए वृक्ष भस्म हो जाते हैं, उसी प्रकार शिवनामरूपी दावानल से दग्ध होकर उस समय तक के सारे पाप भस्म हो जाते हैं। जिसके अंग नित्य भस्म लगाने से पवित्र हो गए हैं तथा जो शिवनामजप का आदर करने लगा है वह घोर संसार- सागर को भी पार कर ही लेता है। संपूर्ण वेदो का अवलोकन करके पूर्ववर्ती महर्षियों ने यही निश्चित किया है कि भगवान शिव के नाम का जप संसार -सागर को पार करने के लिए सर्वोत्तम उपाय है ।अधिक कहने से क्या लाभ शिव नाम के सर्वपापापहारी महात्म्यका एक ही श्लोक में वर्णन शिवपुराण मे किया गया है।



पापानां हरणे शम्भोर्नाम्नि: शक्तिर्हि यावती।


शक्नोति पातकं तावत् कर्तुं नापि नर: क्वचित्।।


भगवान शंकर के एक नाम में भी पाप हरण की जितनी शक्ति है उतना पातक मनुष्य कभी कर ही नहीं सकता पूर्व काल में महा पापी राजा इन्द्रद्युम्न ने शिवनाम के प्रभाव से ही उत्तम सद्गति प्राप्त की थी।



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