गोरखपुर। संस्कार भारती महानगर द्वारा रविवार को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु सम्मान का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस मौके पर अंग्रेजी साहित्यकार एवं दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय अंग्रेजी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफ़ेसर श्रीमती विनोद सोलंकी को सम्मानित किया गया।
सम्मान कार्यक्रम उनके बेतियाहाता स्थित आश्रम पर हुआ। संस्था की ओर से मिथिलेश तिवारी व रीना जायसवाल ने सर्वप्रथम तिलक लगा माल्यापर्ण किया। विश्वमोहन तिवारी, जितेंद्र श्रीवास्तव ने उन्हें अंगवस्त्र भेंट किया। तत्पश्चात वीरेंद्र गुप्त, महानगर अध्यक्ष डॉ. राजीव केतन ,मंत्री प्रेमनाथ व संगम दूबे ने प्रो. विनोद सोलंकी को सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया। डॉ केतन ने गुरुपूर्णिमा की महत्ता एवं, भारतीय संस्कृति में गुरु व शिष्य के बीच रिश्तों पर प्रकाश डाला ।अतिथि का परिचय कराते हुए प्रेमनाथ ने बताया कि प्रोफ़ेसर सोलंकी का योग, दर्शन एवं अध्यात्म से काफी जुड़ाव है। वह अंग्रेजी साहित्य के साथ ही स्वामी विवेकानंद के दर्शन को भी समूचे भारत में प्रचारित व प्रसारित कर रहीं है।
अपने उद्बोधन में प्रो. विनोद सोलंकी ने कहा गुरु का संबंध जीव से जन्म जन्मांतर का होता है । जीवन में जैसे हमारे परिवार होते हैं वैसे ही दृष्टि में एक अध्यात्मिक परिवार होते है। हर जीव का एक गुरु होता है, वह एक जन्म का नहीं वरन जन्म जन्मांतर का होता है, बात बस इतनी है कि जीवन बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है जब हम महसूस करने लगते हैं कि हमारे गुरु हैं हमारे संरक्षक हैं । उनके बताए रास्ते पर हम अपना जीवन संचालित करने लगते हैं उनके शब्दों, साहित्य और आंतरिक प्रेरणा से हमारा जीवन आनंदमयी होने लगता है। हमारे कर्म ही, हमारे कर्म योग बन जाते हैं । वैसे गुरु तत्व पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता ईश्वर स्वयं गुरु हैं। समय-समय पर अवतरण के साथ वह हमारा मार्गदर्शन करने आते है।
कार्यक्रम के अंत में शास्त्री गायिका श्रीमती मिथिलेश तिवारी ने गुरु की महिमा का बखान करते हुए भजन प्रस्तुत किया। भजन गुरु मेरे अवगुण चित ना धरो सुन सभी मंत्रमुग्ध हो उठे। आभार ज्ञापन संस्था के वीरेंद्र जी ने व्यक्त किया। कार्यक्रम के दौरान फिजिकल डिस्टेंस का विशेष ख्याल रखा गया ।
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