हिन्दु मान्यताओं के अनुसार सभी शुभ कार्यों के लिए भद्रा का त्याग किया जाना आवश्यक है। समस्त हिन्दू ग्रन्थ और पुराण, विशेषतः व्रतराज, भद्रा समाप्त होने के पश्चात रक्षा-बंधन विधि करने की सलाह देते हैं। रक्षा बन्धन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। अपराह्न का समय रक्षा बन्धन के लिये अधिक उत्तम माना गया है जो कि हिन्दू समय गणना के अनुसार दोपहर के बाद का समय है। यदि अपराह्न का समय भद्रा आदि की वजह से उपयुक्त नहीं है तो प्रदोष काल का समय भी रक्षा बन्धन के संस्कार के लिये उपयुक्त माना जाता है।
आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार भद्रा का समय रक्षा बन्धन के लिये निषिद्ध माना जाता है। सभी हिन्दु ग्रन्थ और पुराण, विशेषतः व्रतराज, भद्रा समाप्त होने के पश्चात रक्षा बन्धन विधि करने की सलाह देते हैं। उत्तर भारत में ज्यादातर परिवारों में सुबह के समय रक्षा बन्धन किया जाता है जो कि भद्रा व्याप्त होने के कारण अशुभ समय भी हो सकता है। इसीलिये जब प्रातः रहित काल भद्रा व्याप्त हो तब भद्रा समाप्त होने तक रक्षा बन्धन नहीं किया जाना चाहिये। द्रिक पञ्चाङ्ग रक्षा बन्धन के लिये भद्रा-रहित शुभ मुहूर्त उपलब्ध कराता है। कुछ लोगो का ऐसा मानना है कि प्रातःकाल में, भद्रा मुख को त्याग कर, भद्रा पूँछ के दौरान रक्षा बन्धन किया जा सकता है। द्रिक पञ्चाङ्ग की टीम को किसी भी हिन्दू ग्रन्थ और पुराण में इसका सन्दर्भ नहीं मिला और हम भद्रा के दौरान किसी भी रक्षा बन्धन मुहूर्त का समर्थन नहीं करते हैं।
रक्षाबन्धन का मुहूर्त
धर्मशास्त्र के अनुसार भद्रा काल में रक्षाबंधन का कार्य निषिद्ध है, 3 अगस्त को प्रातः 08 बजकर 29 मिनट तक भद्रा रहेगा। इसलिए इस दिन प्रातः आठ बजकर तीस मिनट से रात्रि आठ बजकर इक्कीस मिनट के मध्य रक्षाबंधन बांधने का उचित समय है। इस समय के अंतराल को सर्वोतत्म मन गया है।
सर्वोत्तम समय
प्रातः 08:44 से 10:21 तक शुभ बेला।
अपराह्न: 01:38 से 03:17 तक चर बेला।
अपराह्न: 03:18 से 04:55 तक लाभ बेला।
सायंकाल 04:56 से 06:34 तक अमृत बेला, (सूर्यास्त तक)।
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