क्यों मेवाड़ की राजपूत रानी कर्णावती ने मुगल शासक हुमायूं को भेजी थी राखी

जाने इतिहास के पन्नों से राखी के अमर कथाएं ..



भाई की कलाई पर राखी बांधने का सिलसिला बेहद प्राचीन है। रक्षाबंधन का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। वह भी तब जब आर्य समाज में सभ्यता की रचना की शुरुआत मात्र हुई थी। रक्षाबंधन पर्व पर जहां बहनों को भाइयों की कलाई में रक्षा का धागा बाँधने का बेसब्री से इंतजार रहता है, वहीं दूर-दराज बसे भाइयों को भी इस बात का इंतजार रहता है कि उनकी बहना उन्हें राखी भेजे। उन भाइयों को निराश होने की जरूरत नहीं है, जिनकी अपनी सगी बहन नहीं है, क्योंकि मुँहबोली बहनों से राखी बंधवाने की परंपरा भी काफी पुरानी है। असल में रक्षाबंधन की परंपरा ही उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं। भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो लेकिन उसी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है। इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत की उत्पत्ति लगभग 6 हजार साल पहले बताई गई है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। इसके अलावा हम आपको इतिहास की वो अमर कहानी भी बातएंगे जब मेवाड़ की राजपूत रानी कर्णावती द्वारा भेजी गई राखी का मान रखते हुए मुगल शासक हुमायूं ने कर्णावती की और उसके राज्य की रक्षा की थी। आईए जानते हैं आचार्य पंडित शरद चन्द्र मिश्र के अनुसार...


रानी कर्णवती एवं हुमायूं 



रक्षा-बंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूँ हैं मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूँ को राखी भेजी थी। तब हुमायूँ ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।


सिकंदर की पत्नी बांधा था राजा पुरु को राखी



दूसरा उदाहरण अलेक्जेंडर व पुरू के बीच का माना जाता है। कहा जाता है कि हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित हुआ। इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गई थीं। उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था। सो, उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी। क्योंकि भारतीय राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था।


जब इन्द्राणी ने बाँधा देवराज इंद्र को रक्षा सूत्र


रक्षाबंधन से जुडी सबसे प्राचीन कथा देवराज इंद्र से सम्बंधित है, जिसका की भविष्य पुराण में उल्लेख है। इसके अनुसार एक बार देवताओं और दानवों में कई दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ जिसमे की देवताओं की हार होने लगी, यह सब देखकर देवराज इंद्र बड़े निराश हुए तब इंद्र की पत्नी शचि ने विधान पूर्वक एक रक्षासूत्र तैयार किया और श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को ब्राह्मणो द्वारा देवराज इंद्र के हाथ पर बंधवाया जिसके प्रभाव से इंद्र युद्ध में विजयी हुए। तभी से यह रक्षा बंधन पर्व ब्राह्मणों के माध्यम से मनाया जाने लगा।


द्रौपदी ने बांधी थी कृष्ण की कलाई पर राखी



इतिहास का एक अन्य उदाहरण कृष्ण व द्रोपदी को माना जाता है। कृष्ण भगवान ने दुष्ट राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की अंगुली से खून बह रहा था। इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुई और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की अंगुली में बाँधा जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। वर्षों बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था तब कृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाई थी।


पूर्णिमा पर लक्ष्मी ने बांधा बलि को राखी


पुराणों के अनुसार रक्षा बंधन पर्व लक्ष्मी जी का बली को राखी बांधने से जुड़ा हुआ हैजब दानवों के राजा बलि ने अपने सौ यज्ञ पूरे कर लिए तो देव राज इन्द्र का सिहांसन डोलने लगा। देवराज इंद्र भगवान विष्णु के पास गए उनकी बात सुनकर भगवान विष्णु वामन अवतार ले, ब्राह्माण वेश में राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंच गये और उनसे तीन पग भूमि मांग ली। वामन रुप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग ओर दुसरे पग में पृथ्वी को नाप लियाअभी तीसरा पैर रखना शेष था। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया। जिससे राजा बलि पाताल लोक पहुंच गए । बलि के द्वारा वचन का पालन करने पर, भगवान विष्णु अत्यन्त खुश हुए, उन्होंने आग्रह किया कि राजा बलि उनसे कुछ मांग लें। इसके बदले में बलि ने रात दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लिया. श्री विष्ण को अपना वचन का पालन करते हुए, राजा बलि का द्वारपाल बनना पड़ा । जब यह बात लक्ष्मी जी को पता चली तो उन्होंने नारद जी को बुलाया और इस समस्या का समाधान पूछा। नारद जी ने उन्हें उपाय बताया की आप राजा बलि को राखी बाँध कर उन्हें अपना भाई बना ले और उपहार में अपने पति भगवन विष्णु को मांग ले। लक्ष्मी जी ने ऐसा ही किया उन्होंने राजा बलि को राखी बाँध कर अपना भाई बनाया और जब राजा बलि ने उनसे उपहार मांगने को कहा तो उन्होंने अपने पति विष्णु को उपहार में मांग लिया। जिस दिन लक्ष्मी जी ने राजा बलि को राखी बांधी उस दिन श्रावण पूर्णिमा थी। कहते है की उस दिन से ही राखी का तयौहार मनाया जाने लगा।Shila


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