"बेगम अख्तर सम्मान" में पांच लाख का नगद पुरस्कार, जाने बेगम की अनसुनी कहानी

गोरखपुर। उ.प्र. संस्कृति विभाग द्वारा मल्लिका-ए-गजल बेगम अख्तर की स्मृति में ‘‘बेगम अख्तर पुरस्कार‘‘ हेतु नामांकन प्रपत्र 31 जुलाई 2020 तक मांगे गये हैं। चालू वित्तीय वर्ष 2020-21 में मल्लिका-ए-गजल बेगम अख्तर की स्मृति में दादरा / ठुमरी /गजल विधाओं में ऐसे प्रतिभावान गायक (जिनकी उम्र 40 वर्ष से कम न हो) को ‘‘बेगम अख्तर पुरस्कार‘‘ से सम्मानित किये जाएंगे। इसके अन्तर्गत चयनित कलाकार को पाॅच लाख रूपए, अंगवस्त्र एवं प्रशस्ति पत्र दिया जायेगा।


राजकीय बौद्ध संग्रहालय के उप निदेशक डाॅ. मनोज कुमार गौतम ने बताया कि बेगम अख्तर पुरस्कार से सम्मानित किये जाने वालों में गोरखपुर मण्डल एवं जिले के पात्र मनानुभावों के नामांकन किये जाने है। एतदर्थ इच्छुक महानुभाव संस्कृति विभाग, उ.प्र. की वेबसाइट ूूू www.upculture.up.nic.in  पर जाकर आवेदन-पत्र डाउनलोड कर पूर्ण/स्पष्ट रूप से भरकर उप निदेशक, राजकीय बौद्ध संग्रहालय/प्रभारी, क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र, गोरखपुर से 25 जुलाई 2020 तक अग्रसारित कराते हुए अपना आवेदन पत्र निदेशक, संस्कृति निदेशालय, उ.प्र., लखनऊ को दिनांक 31 जुलाई 2020 तक प्रेषित कर सकते हैं।


गजल की मल्लिका बेगम अख्तर की अनसुनी कहानी 



गजल की मल्लिका कहें या महान गायिका। शुद्घ उर्दू का उच्चारण करने वाली बेगम अख्तर दादरा और ठुमरी की साम्राज्ञी थीं। उनके गीतों-गजलों के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। लेकिन आज हम उनकी जिंदगी से जुड़े ऐसे रोचक पहलुओं के बारे में आपको बताएंगे जिनके बारे में पहले आपने नहीं सुना होगा । बेगम अख्तर के बचपन का नाम बिब्बी था। वो फैजाबाद के शादीशुदा वकील असगर हुसैन और तवायफ मुश्तरीबाई की बेटी थीं।


असगर और मुश्तरी एक-दूसरे से प्यार करते थे। जिसके फलस्वरूप बिब्बी का जन्म हुआ । मुश्तरीबाई को जुड़वा बेटियां पैदा हुई थीं। चार साल की उम्र में दोनों बहनों ने जहरीली मिठाई खा ली थी। इसमें बिब्बी तो बच गईं लेकिन उनकी बहन का देहांत हो गया था। असगर ने भी मुश्तरी और बेटी बिब्बी को छोड़ दिया था जिसके बाद दोनों को अकेले ही जिंदगी में संघर्ष करना पड़ा।


बिब्बी का पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता था। एक बार शरारत में उन्होंने अपने मास्टरजी की चोटी काट दी थी। मामूली पढ़ाई के बावजूद उन्होंने उर्दू शायरी की अच्छी जानकारी हासिल कर ली थी। सात साल की उम्र से उन्होंने गाना शुरू कर दिया था। वहीं मां मुश्तरी इसके लिए राजी नहीं थीं। उनकी तालीम का सफर शुरू हो चुका था। उन्होंने कई उस्तादों से संगीत की शिक्षा ली लेकिन ये सफर आसान नहीं था।


13 साल की उम्र में बिब्बी को अख्तरी बाई के नाम से जाना जाने लगा था। उसी समय बिहार के एक राजा ने कद्रदान बनने के बहाने उनका रेप किया। इस हादसे के बाद अख्तरी प्रेग्नेंट हो गईं और उन्होंने छोटी सी उम्र में बेटी सन्नो उर्फ शमीमा को जन्म दिया। दुनिया के डर से इस बेटी को वह अपनी छोटी बहन बताया करती थीं। बाद में दुनिया को पता चला कि यह उनकी बहन नहीं बल्कि बेटी है। 15 साल की उम्र में अख्तरी बाई फैजाबादी के नाम से पहली बार मंच पर उतरीं।


उनकी आवाज में जिंदगी के सारे दर्द साफ झलकते थे। यह कार्यक्रम बिहार के भूकंप पीड़ितों के लिए चंदा इकट्ठा करने के लिए कोलकाता में हुआ था। कार्यक्रम में भारत कोकिला सरोजनी नायडू भी मौजूद थीं। वे अख्तरी बाई के गायन से बहुत प्रभावित हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। बाद में नायडू ने एक खादी की साड़ी भी उन्हें भेंट में भिजवाई। बेगम अख्तर की शिष्या रीता गांगुली का कहना है कि पहली परफॉर्मेंस के समय अख्तरी बाई की उम्र 11 साल थी।


उस समय कुछ लोग उन्हें तवायफ भी समझते थे। बेगम अख्तर की 73 साल की शिष्या रीता गांगुली ने उन पर एक किताब भी लिखी है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि मुंबई के एक तवायफ संगठन ने मुश्तरी बाई से उनकी बेटी को उन्हें सौंपने का अनुरोध किया था। बदले में एक लाख रुपए देने का प्रस्ताव रखा था लेकिन अख्तरी और मां मुश्तरी ने इस पेशकश को ठुकरा दिया था। धीरे-धीरे शोहरत बढ़ी और अख्तरी बाई के प्रशंसक भी बढ़ गए।


अख्तरी बाई अकेलेपन से बहुत घबराती थीं। वो अपने होटल के कमरे में अकेले जाने से डरती थीं। क्योंकि अकेले में उन्हें पुरानी यादें घेर लेती थीं। उन्होंने अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए शराब और सिगरेट पीना शुरू कर दिया। उन्हें सिगरेट की तलब इतनी ज्यादा थी कि रमज़ान में वो केवल आठ या नौ रोज़े ही रख पाती थीं। वो एक चेन स्मोकर थीं। एक बार वो ट्रेन में सफर कर रही थीं। उस दौरान रात में एक स्टेशन पर गाड़ी रुकी लेकिन उन्हें वहां सिगरेट नहीं मिली।


तब बेगम अख्तर ने गार्ड से सिगरेट मंगाने के लिए उसकी लालटेन और झंडा छीन लिया था। तब गार्ड उनके दिए सौ रुपए का सिगरेट का पैकेट लाया और इसके बाद ट्रेन स्टेशन से आगे बढ़ी। सिगरेट के कारण ही बेगम अख्तर ने ‘पाकीज़ा’ फिल्म छह बार देखी थी। दरअसल, सिगरेट पीने के लिए उन्हें सिनेमाहॉल से बाहर जाना पड़ता था और वापस लौटने तक फिल्म आगे बढ़ चुकी होती थी। इस पर वो दोबारा फिल्म देखने जातीं और इस प्रकार पूरी फिल्म छह बार में देख सकीं।


अख्तरी बाई गायन के साथ अभिनय भी करती थीं। 1939 में उन्होंने फिल्म जगत से नाता तोड़ा और लखनऊ आकर रहने लगीं। यहां आकर उन्हें उनका प्यार मिला। 1945 में उन्होंने परिवार के खिलाफ जाकर बैरिस्टर इश्तियाक अहमद अब्बासी से शादी कर ली। तभी से उनका नाम बेगम अख्तर पड़ गया। पति के कहने पर उन्होंने गाना छोड़ दिया था। गाना छोड़कर शायद बेगम अख्तर ने अपनी जान को छोड़ दिया था, इसीलिए वो बीमार रहने लगीं। सिगरेट बहुत पीती थीं इसलिए उन्हें फेफड़े की बीमारी के साथ डिप्रेशन की समस्या हो गई।


संतान ना पैदा होने के कारण वो बहुत दुखी रहने लगी थीं। तब डॉक्टरों ने कहा कि गाने से उनकी बीमारी ठीक हो सकती है। तब पति की रजामंदी के बाद 1949 में वे ऑल इंडिया रेडियो लखनऊ से जुड़कर गायन की दुनिया में वापस आ गईं। एक बार बेगम अख्तर एक संगीत सभा में भाग लेने मुंबई गईं। वहीं उन्होंने अचानक तय किया कि वो हज करने मक्का जाएंगी। जब तक वो मदीना पहुंची, उनके सारे पैसे खत्म हो चुके थे। उन्होंने जमीन पर बैठकर नात पढ़ना शुरू कर दिया। लोगों की भीड़ लग गई और इस तरह उन्होंने पैसे जमा किए। हज से आने के बाद दो साल तक बेगम अख्तर ने शराब को हाथ नहीं लगाया, मगर धीरे-धीरे फिर से पीना शुरू कर दिया।


भारत सरकार ने इस सुर साम्राज्ञी को पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया था। उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। 30 अक्टूबर 1974 को बेगम अख्तर अहमदाबाद में मंच पर गा रही थीं। तबीयत खराब थी, अच्छा नहीं गाया जा रहा था। ज्यादा बेहतर की चाह में उन्होंने खुद पर इतना जोर डाला कि उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा, जहां से वे वापस नहीं लौटीं। हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। लखनऊ के बसंत बाग में उन्हें सुपुर्दे-खाक किया गया। उनकी मां मुश्तरी बाई की कब्र भी उनके बगल में ही थी।


 


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