कोरोना के हर पहलू पर हुई बात, हर सवाल का मिला जवाब


  • जिले के स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारियों को यूनीसेफ, यूपीटीएसयू, सीफॉर से जुड़े विशेषज्ञों ने किया प्रशिक्षित

  • सूबे के 75 जिलों के प्रशिक्षण क्रम में शुक्रवार को गोरखपुर समेत 26 जिले जूम एप पर हुए प्रशिक्षित


गोरखपुर। क्या कोरोना संक्रमित स्वस्थ होने के बाद पुनः संक्रमित हो सकता है...,  होम क्वारंटीन परिवार में टीकाकरण कैसे होगा..., निगरानी समिति में सिर्फ आशा कार्यकर्ता और प्रधान ही सक्रिय दिख रहे हैं..., इन सभी सवालों पर चर्चा हुई और बेहतर उत्तर भी प्राप्त हुए। साथ ही कोरोना के हर पहलू पर बात हुई। मौका था जिले के स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारियों के शुक्रवार को जूम एप पर आयोजित हुए प्रशिक्षण का। यूनीसेफ, उत्तर प्रदेश टेक्निकल सपोर्ट यूनिट (यूपीटीएसयू) और सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफॉर) के सहयोग से गोरखपुर और कुशीनगर समेत उत्तर प्रदेश के 26 जिलों को स्वास्थ्य विभाग ने प्रशिक्षित करवाया। 



प्रशिक्षण का शुभारंभ सहायक मिशन निदेशक (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) हीरालाल ने किया। उन्होंने कहा कि प्रयास है कि अलग-अलग कार्यक्रमों के अनुसार भी प्रशिक्षण दिया जाए। इस बीमारी से बचाव का सबसे सशक्त तरीका सावधानी ही है और इसी के जरिये समुदाय को बीमारी से बचाया जा सकता है। यूनीसेफ के प्रशिक्षक डॉ. निर्मल सिंह ने बताया कि 100 में से 81 लोगों को यह बीमारी कम लक्षणों के साथ होती है और अपने आप ठीक हो जाती है लेकिन चिंता का विषय यह है कि यह 81 लोग भी कोरोना के वाहक हो सकते हैं। 14 फीसदी लोगों में गंभीर लक्षण दिखते हैं जबकि 4.7 फीसदी लोगों में यह बीमारी क्रिटिकल रूप धारण कर लेती है। उन्होंने प्रवासियों के बारे में व्यवहार परिवर्तन पर खासतौर से जानकारी दी।
यूनीसेफ के ही प्रशिक्षक सत्यवीर ने निगरानी समितियों के बारे में समझाते हुए बताया कि जिनके घरों में होम क्वारंटीन का इंतजाम न हो उन्हें निगरानी समिति को प्रयास करके कम्युनिटी क्वारंटीन की व्यवस्था करवानी चाहिए। होम क्वारंटीन व्यक्ति के घर शौचालय न हो तो ग्राम प्रधान को इसकी व्यवस्था करानी चाहिए। अगर कोई व्यक्ति एक बार से अधिक होम क्वारंटीन का उल्लंघन कर रहा हो तो निगरानी समिति सूचना देकर उसे फैसिलिटी क्वारंटीन करवा सकती है। चरगांवा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी मनोज कुमार के सवाल पर उन्होंने कहा कि जब तक ग्राम व वार्ड स्तर तक निगरानी समितियों का प्रशिक्षण नहीं हो जाएगा तब तक आशा और प्रधान की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण होगी।
यूपीटीएसयू की डॉ. शालिनी रमन ने बताया कि कोविड-19 के संक्रमण के प्रति सावधान रहते हुए वीएचएनडी, एचबीएनसी, मातृ, शिशु, किशोर स्वास्थ्य संबंधित सेवाएं जारी रखनी हैं। खोराबार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी श्वेता पांडेय के टीकाकरण संबंधित सवाल पर उन्होंने स्पष्ट किया कि कोरोना संक्रमित या होम क्वारंटीन लोगों के घर टीकाकरण तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि स्थितियां सामान्य न हो जाएं। 
सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफॉर) की नेशनल प्रोजेक्ट लीड रंजना द्विवेद्वी ने मीडिया ट्रेंड के बारे में विस्तार से चर्चा की और कहा कि प्रयास होना चाहिए कि मीडिया में ‘‘मिल गया, पकड़ लिया, एक और’’ जैसे शब्द न छपें। सेंसेशनल भाषा से परहेज करना होगा। मिथकों और भ्रांतियों का अपने स्तर पर खंडन करना होगा। उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार से सीफॉर के सहयोग से कोरोना संक्रमण के दौरान ढेर सारी सूचनात्मक खबरें प्रकाशित करवाई गईं ताकि समुदाय को लाभ मिल सके। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कोरोना संक्रमित का नाम, पता, जाति व पहचान मीडिया में न प्रकाशित करवाई जाए। 
यूनीसेफ के दयाशंकर सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि इस प्रकार का प्रशिक्षण अंग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं को भी देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आईईसी के सामग्री में हमारा प्रयास होना चाहिए कि ऐसी कोई चीज न जाए जिससे समुदाय में यह संदेश जाए कि कोराना का सबंध किसी जाति, धर्म, लिंग या समुदाय से है। अभी तक सिर्फ जागरूकता और बचाव ही इस बीमारी का सबसे बड़ा इलाज है।
यूनीसेफ के भाई शैली ने प्रशिक्षण का संचालन किया। सत्र के दौरान उन्होंने सोशल स्टिगमा पर खासतौर से चर्चा की और कहा कि कोरोना जैसी अनजान बीमारी के बारे में भय के कारण प्रभावित व्यक्ति की देखभाल करने वाले, स्वास्थ्यकर्मी, अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ता, सफाईकर्मी और अब तो प्रवासी लोग भी इस स्टिगमा का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में प्रयास करना होगा कि सामाजिक दूरी कहीं सामाजिक अलगाव न बन जाए। यूनीसेफ की संगीता भगत ने कोरोना वारियर्स की कहानियों के दस्तावेजीकरण के जरिये समाज में सकारात्मक वातावरण बनाए जाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस, सफाईकर्मी और कोरोना के खिलाफ युद्ध में डंटे सभी लोगों के बारे में सोशल मीडिया कैंपेन व मॉस मीडिया कैंपेन के जरिये प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।
प्रशिक्षण के दौरान यह भी सवाल उठाया गया कि क्या कोरोना संक्रमित व्यक्ति पुनः इससे पीड़ित हो सकता है। इस सवाल पर डॉ. निर्मल ने कहा कि यह शोध का विषय है। कैंपियरगंज के स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी मनोरंजन सिंह प्रदेश के कई अन्य स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारियों ने अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा की। प्रशिक्षण के संबंध में जिला स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी केएन बरनवाल ने बताया कि कई नई जानकारियां मिली हैं। हमारा प्रयास होगा कि अंग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के जरिये समुदाय तक यह सूचनाएं प्रेषित की जाएं।


संचार का काफी महत्व-सीएमओ
कोरोना की रोकथाम में संचार का काफी महत्व है। गोरखपुर जनपद के डीएचईआईओ, सभी एचईओ और कुछ जगहों पर बीसीपीएम ने प्रशिक्षण में प्रतिभाग किया है। हमे उम्मीद है कि यह प्रशिक्षण कोरोना के प्रति जनजागरूकता लाने में मिल का पत्थर साबित होगा।



डॉ. श्रीकांत तिवारी, मुख्य चिकित्साधिकारी


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