चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में परिगणित है रामेश्वर परम पावन धाम

पहली जून को रामेश्वर मन्दिर प्रतिष्ठा दिवस पर विशेष



चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में परिगणित है रामेश्वर परम पावन धााम   क्षे्ष्षे््षे्ष्षे्षे्ष्षे्



आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार भगवान श्रीराम ने इसकी स्धापना की थी। कहते हैं कि भगवान श्रीराम जब यहाॅ पधारे, तब उन्होंने उप्पूर में गणेश जी की स्थापना की थी। नवपाषाणम् में उन्होंने नवग्रह पूजन,स्नान आदि किया था ।देवीपत्तनम् के वेताल तीर्थ में तथा पाम्बन के भैरव तीर्थ में भी उन्होंने स्नान किया ।एक स्थान पर वे एकान्त में बैठे ।फिर रामेश्वर जाकर उन्होंने रामेश्वर-स्थापन का पूजन किया ।भगवान श्रीराम ने जो पुल बॅधवाया था वह अपार वानर सेना को समुद्र पार ले जाने योग्य विस्तीर्ण था ।पौराणिक युग में रामेश्वर क्षेत्र का नाम गन्धमादन था ।कहा जाता है कि कलियुग के प्रारम्भ में गन्धमादन पर्वत पाताल चला गया ।उसका पवित्र प्रभाव यहाॅ की भूमि है ।यहाॅ बार-बार देवता आते थे इसलिए इसे देवनगर भी कहतें हैं ।महर्षि अगस्त्य का आश्रम यही था ।मान्यता है कि उन्होंने समुद्र पी डाला था ।यह एक रूपक है ।अर्थ है कि अगस्त्य और उनके कुल के श्रेष्ठ पुरूष समुद्री जलपोतों का निर्माण कर आर्यों के आदर्शों को सैकड़ों द्वीपों तक प्रसारित किया ।अपनी तीर्थ यात्रा में श्रीबलराम जी यहाॅ इस रामेश्वर क्षेत्र में पधारे थे ।पाण्डव भी यहाॅ आये थे ।इस प्रकार अनादि काल से यह देवता,ॠषिगण एवं महापुरुषों की श्रद्धाभूमि रही है ।चार दिशाओं के चार धामों में रामेश्वर दक्षिण दिशा का पवित्र धाम है । स्कन्द पुराण के ब्राह्मखण्ड में कहा गया है कि--"रामेश्वर लिंग तथा गन्धमादन पर्वत का--चिन्तन करने वाला मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है ।-"यह एक समुद्री द्विप में स्थित है ।एक कथा तो प्रसिद्ध ही है कि भगवान श्रीराम ने लंका जाते समय सेतु बॅधवाया और श्री रामेश्वर की स्थापना की ।श्रीरामेश्वर जी का एक बहुत सुन्दर स्फटिकलिंग है ।इसके दर्शन प्रातःकाल ही होते हैं। यह स्फटिकलिंग अत्यन्त स्वच्छ तथा पारदर्शी है ।मन्दिर खुलते ही प्रथम इसकी पूजा होती है ।इस मूर्ति पर दुग्धधारा चढ़ते समय मूर्ति के स्पष्ट दर्शन होते हैं ।पूजन हो जाने के पश्चात मूर्ति पर चढ़ा पंचामृत प्रसाद  रूप में यात्रियों को दिया जाता है ।श्री रामेश्वर के जगमोहन में छड़ के घेरे के पास दो छोटे मन्दिर हैं ।एक में गन्धमादनेश्वर शिवलिंग है ।कहा जाता है कि यह महर्षि अगस्त्य द्वारा स्थापित है ।श्री रामेश्वर के स्थापना के पूर्व भी यह था ।दूसरे छोटे मन्दिर में अनादिसिद्ध स्वयम्भूलिंग है ।इसे अत्रपूर्वम् (यहाॅ सबसे पहले का) कहते हैं ।अगस्त्य द्वारा पूजित होने के कारण इसका नाम अगस्त्येश्वर है ।रामेश्वर मन्दिर से सटा हुआ दक्षिण की ओर एक छोटा मन्दिर है ।इसमें राम लक्ष्मण और जानकी के विग्रह हैं ।श्रीरामेश्वर मन्दिर के सामने छड़ो का घेरा है ।तीन द्वारों के भीतर श्रीरामेश्वर का ज्योतिर्लिंग प्रतिष्ठित है ।इसके उपर शेष जी के फणों का छत्र है ।।रामेश्वर जी पर कोई तीर्थयात्री अपने हाथ से जल नही चढ़ा सकता है ।मूर्ति पर गंगोत्तरी या हरिद्वार से लाया ही गंगाजल चढ़ता है ।यह जल पुजारी को दियां जाता है और वह इसे अर्पण करतें हैं ।


[5:42 PM, 5/29/2020] Pt. Sharad Chandra Mishra: रामेश्वर मन्दिर में यो तो उत्सव चलते रहते हैं ।कुछ विशेष उत्सवों के नाम ये हैं---महशिवरात्रि,वैशाख पूणिमा,ज्येष्ठ मास के शुक्ल दशमी (राम लिंग प्रतिष्ठा दिवस),आषाढ़ कृष्ण अष्टमी से श्रावण शुक्ल पक्ष के समापन तक,दोनो नवरात्रों में,स्कन्द जन्मोत्सव के दिन,मार्गशीष शुक्ल षष्ठी से पूर्णिमा पर्यन्त ।इसके अतिरिक्त मकर संक्रांति,चित्र शुक्ल प्रतिपदा ।कार्तिक महीने के कृतिका के दिन तथा चैत्र पूर्णिमा को,ॠषभादि वाहनों पर उत्सव विग्रह दर्शन देते हैं ।यहाॅ वैकुण्ठ एकादशी तथा रामनवमी को श्रीरामोत्सव होता है ।प्रत्येक मास की कृत्तिका नक्षत्र के दिन सुब्रह्मण्य की चाॅदी के मयूर पर सवारी निकालती है ।प्रत्येक प्रदोष व्रत के दिन श्री रामेश्वर की उत्सव मूर्ति वृषवाहन पर मन्दिर के तीसरे प्राकार की प्रदक्षिणा में निकालती हैं ।इसी प्रकार प्रत्येक शुक्रवार को अम्बाजी की उत्सवमूर्ति की सवारी निकलती है ।इसके बारे में भगवान श्रीराम ने कहा है,--" जानकी और मेरे द्वारा निर्मित और स्थापित यह मूर्ति अविचल है ।जो इसका दर्शन करेगा,वह परम धाम प्रयाण करेगा  ।-"श्रीरामेश्वर  जी की यह मूर्ति पहलें वन में थी ।पीछे कुछ लोगों ने यहाँ झोपड़ी बना दी ।आगे चलकर सेतुपति राजाओं ने यहाँ मन्दिर बनवाया ।वर्तमान मन्दिर कई नरेशों के सहयोग से इस रूप में आया है ।यहाॅ के तीर्थों एवं अन्य देवमूर्तियों के स्थापन की कथा भी कई पुराणों में लिखी गयी है ।
रामेश्वर बाजार केवल पूर्व समुद्र के किनाने लगभग 20 बीघे भूमि के विस्तार में श्रीरामेश्वर मन्दिर है ।मन्दिर के चारो ओर उॅचा परकोटा है ।इसमें पूरब और पश्चिम उॅचे गोपुर हैं ।पूर्व का गोपुर दस मंजिल का है ।पश्चिम का गोपुर सात मंजिल का है ।रामेश्वर मन्दिर में कुल 22 तीर्थ हैं ।मन्दिर में दोनों ओर स्तम्भों में सिंहादि की सुन्दर मूर्तियहाॅ हैं ।एक स्थान पर राजा सेतुपति और उनके परिवार के लोगों की मूर्तियाॅ एक स्तम्भ में बनी है ।उसके आगे ब्रह्महत्या विमोचन तीर्थ,चन्द्र तीर्थ,गंगा तीर्थ,यमुना तीर्थ और गाय तीर्थ नामक कुण्ड है ।ये तीर्थ मन्दिर के घेरे में हैं ।पास में ही सुब्रह्मण्यम् सरोवर है ।यह मन्दिरों का नगर है ।यहाॅ और भी सैकड़ो मूर्तियां और तीर्थ विद्यमान हैं।


-आचार्य पं शरदचन्द मिश्र


Comments