10 प्रकार के पापों का संहरण करतीं हैं माॅ गंगा

गंगा दशहरा पर विशेष...


गोरखपुर। काशी से प्रकाशित पंचागों के अनुसार 1 जून दिन सोमवार को सूर्योदय 5 बजकर 16 मिनट पर और दशमी तिथि का मान दिन में 11 बजकर 54 मिनट तक, हस्त नक्षत्र सम्पूर्ण दिन, रात्रि 10 बजकर 50 मिनट पर्यन्त और सिद्धि योग दिन में 11 बजकर 19 मिनट तक। चन्द्रमा की स्थिति कन्या राशि यथा सूर्य वृष राशि पर स्थिति है। मान्यता  है कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के दशमी तिथि और हस्त नक्षत्र में माॅ गंगा का स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर अवतरण हुआ था ।इस वर्ष यह पहली जून दिन सोमवार को है। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी संवत्सर का मुख मानी जाती है। इस दिन गंगा नदीमें स्नान,दान और उपवास का विशेष महत्त्व है।। ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि हस्त नक्षत्र से संयुक्त ज्येष्ठ शुक्ल दशमी,दस प्रकार के पापों को रहने के कारण दशहरा कहलाती है।



ये दस पाप हैं तीन कायिक



  1. बिना अनुमति के दूसरे की वस्तु देना,

  2. हिंसा,

  3. पराये स्त्री गमन। चार वाचिक

  4. कटु वचन बोलना,

  5. झूठ बोलना,

  6. पीछे से बुराई या चुगली करना,

  7. निष्प्रयोजन बातें करना  ,यथा तीन मानसिक,

  8. दूसरे की वस्तु को अन्याय पूर्ण ढंग से लेने का विचार रखना,

  9. दूसरे के अनिष्ट का चिन्तन करना,

  10. नास्तिक बुद्धि रखना।


स्कन्द पुराण में कहा गया है कि


"ज्येष्ठ मासि सिते पक्षे दशाम्यां बुध हस्तयोः। व्यतीपाते गरानन्दे कन्या चन्द्रे वृषे रवौ। दस योगे नरः स्नानात्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।।"


अर्थात ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को बुधवार हो, हस्त नक्षत्र हो, व्यतिपात योग हो, गर करण हो, आनन्द नामक महायोग हो, सूर्य वृष राशि और चन्द्रमा कन्या राशि में हो, तो ऐसा अभूतपूर्व योग महाफलदायक होता है। व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
इस दिन क्या करें


यदि गंगा तट वासी हैं तो गंगा नदी में, अन्यथा समीप की पवित्र नदी, यदि यह भी सम्भव न हो तो तो घर पर ही कुछ गंगा जल में स्वच्छ जल मिलाकर स्नान करें। तदुपरान्त गंगा जी की विधिपूर्वक षोडशोपचार विधि से पूजन सम्पन्न करें। यह पूजन नाम मन्त्र से भी किया जा सकता है। ऊॅ गं गंगायै नमः -नाम मन्त्र से भी पूजन सम्पन्न कर सकते हैं।
धर्म शास्त्रों के इस दिन निम्न मन्त्र का यथा सम्भव जप करना चाहिए। "ऊॅ नमः शिवायै नारायणायै दशहरायै गंगायै नमः"।। यदि हो सके तो उक्त मन्त्र में नमः के स्थान पर "स्वाहा " लगाकर हवन भी करें। तत्पश्चात-"ऊॅ नमो भगवति ऐं ह्रीं श्रीं हिलि-हिलि मिलि-मिलि गंगे मां पावय-पावय स्वाहा।"--इस मन्त्र से पाॅच पुष्पांजलि अर्पण करके गंगा जी को पृथ्वी पर अवतरित करने वाले भगीरथ जी का तथा हिमालय का भी पूजन करें। अन्त में दस-दस मुट्ठी अनाज एवं अन्य वस्तुएॅ दस ब्राह्मणों को दान करें। इस दिन जल और सत्तू का दान करना चाहिए।


 व्रत माहात्म्य


अयोध्या के राजा महाराजा सगर अपने असमंजस सहित साठ हजार पुत्रों के दुष्टता से बहुत दुःखी थे ।फलतः असमंजस और साठ हजार पुत्रों के स्थान पर अपने पौत्र और असमंजस के पुत्र अंशुमान को अपना उत्तराधिकारी बनाया। जब सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया,तब इन्द्र ने अश्वमेध के घोड़े को पाताल लोक में ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बाॅध दिया। कपिल मुनि उस समय ध्यान मग्न थे,उन्हें इस बात की भनक न लगी कि महाराजा सगर के अश्वमेध का घोड़ा उनके आश्रम में बॅधा हुआ है ।जब सगर के साठ हजार पुत्रों को पता चला कि कपिल मुनि के आश्रम में घोड़ा बॅधा हुआ है तो वे कपिल को मारने के लिए गये ।कपिल ने अपने तेज से सांठ  हजार  पुत्रों  को भष्म कर दिया। अंशुमान को जब पता चला तो उन्होंने कपिल मुनि से प्रार्थना की। अंशुमान की प्रार्थना से प्रसन्न होकर कपिल मुनि ने उसे यज्ञ का घोड़ा वापस कर दिया और कहा कि गंगाजल के स्पर्श से सगर के साथ हजार पुत्रों की  मुक्ति हो सकती है। महाराजा सगर का अश्वमेध यज्ञ समाप्त हुआ। कुछ समय के पश्चात सगर ने अंशुमान को राजा बना दिया,परन्तु अंशुमान अपने चाचाओं की मुक्ति के लिए चिन्तित था। कुछ समय राज्य करने के बाद वह अपने पुत्र दिलीप को गद्दी सौंपने के पश्चात गंगा को पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से, तपस्या करने के लिए वन में चला गया। तपस्या करते हुए प्राण त्याग दिये, किन्तु पृथ्वी पर गंगा का अवतरण न हो सका। दिलीप भी प्रयास किये परन्तु वे भी सफ़ल न हुए। दिलीप के पुत्र भगीरथ ने प्रयास किया ब्रह्मा, पश्चात शिव जी आराधना की। तब समस्त देवगणों एवं भगीरथ के सम्यक प्रयास से गंगा का अवतरण हुआ। भगवान शिव ने गंगा को उपनी जाट में धारण किया और आगे भगीरथ और पीछे  गंगा जी प्रस्थान करती हुई, कपिल के आश्रम में जाकर भगीरथ के साठ हजार पूर्वजों का उद्धार कीं। भगीरथ के प्रयास से पृथ्वी पर गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ है, इसलिए गंगा जी को "भागीरथी "भी कहा जाता है।



आचार्य पं शरदचन्द मिश्र


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