गिरा मिला नेपाल का गिद्ध, पंखों पर लगे हैं टैग और ज्योग्राफिक इनफार्मेशन सिस्टम

कुशीनगर में गिरा मिला नेपाल का गिद्ध, पंखों पर लगे हैं टैग और ज्योग्राफिक इनफार्मेशन सिस्टम




कुशीनगर। बरवापट्टी थाना क्षेत्र के रामपुर पट्टी में एक गिद्ध गिरा हुआ पाया गया। उसके दोनों पंखों में सी 3 टैग और जीपीएफ लगा है। डीएफओ वीसी ब्रह्मा ने जांच पड़ताल के बाद बताया कि इसे नेपाल के चितवन स्थित बर्ड कंजर्वेशन सेंटर से नवंबर-2019 में छोड़ा गया था। तभी से वहां उसकी ट्रैकिंग चल रही है। कहीं चोट के निशान नहीं मिले हैं। बीमार या थका लग रहा है। ठीक होने के बाद इसे यहां से छोड़ा जाएगा। फिलहाल यह कुछ खा पी नहीं रहा है। मटन की व्यवस्था की जा रही है।  


शुक्रवार को गांववालों ने गिद्ध को पड़ा हुआ देखा तो इसकी सूचना वनाधिकारियों को दी। डीएफओ के निर्देश पर तमकुही रेंज के वन क्षेत्राधिकारी नृपेंद्र द्विवेदी ने मौके पर वनकर्मियों को भेजा। गिद्ध को उठाकर सरगटिया करनपट्टी स्थित वन विभाग के कार्यालय पर लाया गया है। डीएफओ ने बताया कि नेपाल के चितवन में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के कोलैबोरेशन से वल्चर ब्रीडिंग पर रिसर्च चल रहा है। यह व्हाइट रंम्प्ड (जिप्स बेंगेंसिस) प्रजाति का है। मुंबई की यह संस्था कई वर्षों से इस पर रिसर्च कर रही है।  डीएफओ ने बताया कि गिद्ध या तो लंबी उड़ान से थक गया होगा या बीमार होगा। इसलिए यहां गिर गया था। रिसर्च के लिए संरक्षित प्रजाति इन गिद्धों को छोड़ा जाता है और ट्रैकिंग की जाती है।


पिछले साल महराजगंज में करायी गयी थी गिद्धों की टैगिंग 
पिछले साल वन विभाग ने महराजगंज में गिद्धों की गिनती और टैगिंग कराई थी। महराजगंज के  फरेंदा तहसील के भारी-बैसी गांव में ‘जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र’ भी स्‍थापित किया जा रहा है। यह केंद्र हरियाणा के पिंजौर में स्थापित ‘जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र’ की तर्ज पर स्थापित हो रहा है। गिद्ध संरक्षण के लिए पिंजौर देश का पहला और महराजगंज प्रदेश का पहला संरक्षण केंद्र है।
 
भारत में पाई जाती हैं गिद्धों की नौ प्रजातियां
भारतीय महाद्वीप पर गिद्धों की नौ प्रजातियां पाई जाती हैं। लेकिन गिद्धों की तीन प्रजातियां व्हाइट रैंम्प्ड (जिप्स बेंगेंसिस), लॉन्ग-बिल्ड (जिप्स इंडिकस) और सिलेंडर-बिल्ड (जिप्स टेनुइरोस्ट्रिस) भारतीय वन्य जीव अधिनियम की अनुसूची (एक) के तहत संरक्षित हैं। इन केंद्र में उनके प्रजनन और संरक्षण पर भी जोर दिया जाएगा। गोरखपुर में बनने वाला ‘जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र’ बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) एवं वन्यजीव अनुसंधान संगठन के साथ मिल कर स्थापित हो रहा है। केंद्र की स्‍थापना से पहले गिद्धों की संख्या और उनके प्राकृतिक आवास का मूल्यांकन किया जा रहा है। महराजगंज में यह उत्तर प्रदेश का पहला ‘जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र’ होगा। चल रहे सर्वेक्षण का मकसद यह पता लगाना है कि गिद्धों की कौन सी प्रजाति सबसे ज्यादा खतरे में हैं। सर्वेक्षण में जीआईएस (ज्योग्राफिक इनफार्मेशन सिस्टम) मैपिंग तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। ताकि इनकी सही संख्या का पता लग सके। महराजगंज वन प्रभाग के मधवलिया रेंज में अगस्त 2018 में 100 से अधिक गिद्ध देखे गए थे। प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित गो-सदन के पास भी यह झुण्ड दिखा था। वन विभाग कहना है कि वर्ष 2013-14 में गिद्धों की गणना की गई तो यूपी के 13 जिलों में 900 के करीब गिद्ध मिले थे। 



जासूसी की फैल गयी थी अफवाह
जीपीएस ट्रैकर लगा गिद्ध पाए पाए जाने के बाद जिले में सोशल मीडिया पर तेजी से अफवाह पफैल गयी कि यह किसी देश ने जासूसी के छोड़ा है। जब यह जानकारी एसपी विनोद कुमार मिश्र को मिली तो उन्होंने सूचना प्रसारित की कि इस लगा ट्रैकिंग सिस्टम किसी जासूसी आदि से सबंधित नहीं है। यह गिद्ध रिसर्च का हिस्सा है।


चितवन नेपाल बर्ड कंजर्वेशन नेपाल से आया है। वहां मुंबई की बीएनएचएस के कोलैबोरेशन से वल्चर ब्रीडिंग सेंटर में काम चल रहा है। इसे को नवंबर-2019 में छोड़ा गया था। नवंबर से ट्रैकिंग की जा रही है। रिसर्च चल रहा है। इसे यहां ऑब्जर्वेशन में रखा गया है। स्वस्थ होने पर छोड़ा जाएगा।
वीसी ब्रह्मा, डीएफओ


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