अभिचारिक क्रियाओं को स्तम्भन करने वाली देवी हैं बगलामुखी

बगलामुखी दक्षिणाम्नाय एवं उत्तराम्नाय दोनो की उपास्या देवी है। यह श्री कुल की देवी है इनकी उपासना दोनो ही मार्गों वाममार्ग- दक्षिणमार्ग से की जाती है। बगलामुखी के चार स्वरूप हैं


1-वैदिक एवं औपनिषदिक स्वरूप।


2-तन्त्र- पौराणिक स्वरूप जिसमें दस  महाविद्याओं में एक विद्या के रूप में।


3--तन्त्र- पौराणिक स्वरूप जिसमें सौराष्ट्र के हरिद्रा सरोवर में प्रकट स्वरूप, परात्पर ब्रह्म स्वरूप।


4-वैदिक एवं औपनिषदिक स्वरूप में ये वलगहन हैं अर्थात अभिचारिक कृत्य 'वल्गा' का नाश करने वाली शक्ति।



आचार्य पं. शरद चंद्र मिश्र के अनुसार यजुर्वेद, अथर्ववेद, पितम्बरोपनिषद्, बगला- उपनिषद् आदि में उनके वलगहन स्वरूप का उल्लेख मिलता है। देवीभागवत पुराण में वर्णित कथा के अनुसार प्रजापति दक्ष के यज्ञ में अनामन्त्रित सती को जाने से रोकने पर योगमाया सती ने क्रोधावेश में दसों दिशाओं को अवरूद्ध करने वाले दस स्वरूप धारण करके शिव को अत्यन्त भयभीत कर डाला था। सती के इन्ही दस स्वरूपों में एक रूप भगवती बगलामुखी का भी था। स्वतन्त्र तन्त्र, प्राणतोषिनी तन्त्र आदि में भगवती बगलामुखी के आविर्भाव की कथामें कहा गया है कि एक समय सतयुग में एक भयानक वात्याचक्र आया, जिससे सम्पूर्ण जगत में त्राहि-त्राहि मच गयी। भगवान विष्णु ने उसको शान्ति के लिए तप किया। उसी तपस्या से प्रसन्न होकर माॅ बगलामुखी का आविर्भाव हुआ। उनका आविर्भाव मंगलवार, चतुर्दशी तिथि को अर्धरात्रि में हुआ। अन्यान्य ग्रन्थों में इसे वैशाख शुक्ल अष्टमी को प्रातःकाल माना गया है।
बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवें क्रम की देवी मानी जाती हैं। इसी कारण इन्हे अष्टमी भी कहा जाता है। अभिचारिक कर्मों में श्री बगलामुखी की प्रधानता होने के कारण सामान्य धारणा में इन्हे तामसिक शक्ति के रूप में अभिहित किया जाता है। कई स्थानों पर विद्वानों ने भी इन्हे तामसिक विद्या कहा है, परन्तु यह एक पक्षीय व्याख्या है, जो कि अधूरी ही है। माॅ बगलामुखी को तामस शक्ति मानना उचित नही है। यह ठीक है कि अभिचारिक कर्मों से रक्षा की दृष्टि से इनकी उपासना की जाती है, परन्तु तन्त्र में इन्हे त्रिशक्तिस्वरूप माना गया है।
पहली मई को बगलामुखी जयन्ती
भगवती बगलामुखी अत्यन्त गम्भीर प्रकृति वाली हैं। उनका वर्ण तपाये हुए स्वर्ण की भाॅति है उनके पीले रंग की आभा निकल रही है ये त्रिनयना हैं। इन्हे दो भुजा वाली एवं चार भुजाधारी दोनों ही स्वरूपों में जाना गया है। भुजा स्वरूप में एक हाथ में मुद्गर एवं दूसरे हाथ में शत्रु की जिह्वा धारण किये हुए हैं। चार भुजा स्वरूप में उनके दाहिने हाथों में मुद्गर और पाश है। बायें हाथ में शत्रु की जिह्वा एवं वज्र है। उनके वस्त्र भी पीले हैं। ये पीले रंग के आभूषणों से शोभायमान हैं। ये स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान हैं। माॅ बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र विद्या के रूप में भी जाना जाता है। ब्रह्मास्त्र का अर्थ है कि जब ब्रह्म ही अस्त्र हो जाय। ब्रह्मास्त्र की सत्ता सर्वोपरि है। उसका निरोधक और कोई अस्त्र नही है। ब्रह्मास्त्र से ही उसका विरोध हो सकता है। भगवती बगला जहाॅ ब्रह्मास्त्र की शक्ति हैं, वही ब्रह्मास्त्र की स्तम्भिनी विद्या भी हैं अर्थात उसकी निरोधक भी हैं।
बगलामुखी को ग्रन्थों में वल्गामुखी, बगला, पीताम्बरा, बह्मास्त्र विद्या, इत्यादि नामों से अभिहित किया गया है। बगलामुखी नाम में बगला शब्द वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है लगाम या रास। जिस पचास लगाम घोड़े की शक्ति को स्तम्भित कर देती है, उसी प्रकार बगलामुखी ब्रह्माण्ड की किसी भी या समस्त क्रियाओं को स्तम्भित कर देती है।
भगवती बगला की उपासना सर्वप्रथम ब्रह्मा ने की, उसी से वे सृष्टि की रचना में समर्थ हो सके। ब्रह्मा ने यह विद्या सनक आदि ऋषियों को प्रदान की। सनत कुल ने यह विद्या नारद को प्रदान किया। नारद ने सांख्यायन को दिया और उन्होंने सांख्यायन तन्त्र का प्रणयन किया। इस विद्या के द्वितीय उपासक विष्णु हुए और शिव तृतीय उपासक हुए। शिव ने ब्रह्मास्त्र विद्या को परशुराम को प्रदान किया और परशुराम ने उसे द्रोणाचार्य, कर्ण, भीष्म आदि को दिया। द्रोणाचार्य ने अर्जुन और अश्वत्थामा को दिया। श्रीकृष्ण भी इसके जानकार थे। भगवान शिव ने यह विद्या च्यवन को प्रदान की। बगलामुखी की उपासना में पीला वस्त्र धारण कर ही पूजा की जाती है। इनकी उपासना में हरिद्रा गणपति, त्रयम्बक और आनन्द भैरव की भी उपासना की जानी चाहिए। इनकी पूजा के अभाव में माॅ की उपासना अधूरी मानी जाती है। समस्त रूके कार्यों में प्रगति और प्राकृतिक आपदाओं या मानव निर्मित बाधाओं के उपशमन के लिए इनकी उपासना सर्वसिद्धि कारी माना गया है।


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