आदिशक्ति की नौ दिन आराधना अब पूर्णता की ओर है। नौ दिन का जप, तप विधान के साथ पूरा होने के बाद अब अवसर आया है कन्या पूजन का। चैत्र नवरात्र 2020 में बुधवार को अष्टमी है और गुरुवार को नवमी। देवी आराधना करने वाले साधक अष्टमी और नवमी को कन्या पूजन करेंगे।कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के कारण सभी अपने घरों में ही कैद हैं। सामाजिक दूरी बनाकर रह रहे हैं लेकिन अब कन्या पूजन के लिए बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। धर्म वैज्ञानिक पंडित राजेश त्यागी के अनुसार लॉकडाउन में न कोई मंदिर खुला है और न ही कोई किसी के घर ही जा रहा है। संक्रमण के इस काल में बेहतर तो ये ही है कि सांकेतिक कन्या पूजन कर नवरात्र आराधना का परायण कर दिया जाए।
पंडित राजेश बताते हैं कि यदि आसपास रहने वाली कन्याओं को आमंत्रित करना ही है तो पहले उन्हें अच्छे से सेनेटाइज करें। खुद भी पूजन में सावधानी बरतते हुए दूरी बनाए रखें। ध्यान रखें ये पूजन मंगलकामना के लिए है। इस पूजन का लाभ सभी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए होना है। जिसका पूजन कर रहें हैं उस कन्या के स्वास्थ्य के साथ अपने स्वास्थ्य की चिंता भी आप ही को करनी है। इसलिए उचित दूरी बनाकर ही पूजन करें। बाहर की वस्तु देने की अपेक्षा घर पर ही स्वच्छता से बना भोजन करवाएं और विदा करें। इसके अलावा जरूरतमंद बच्चों के लिए भोजन के पैकेट बनाकर भी सावधानी के साथ आसपास की बस्ती में आप देने जा सकते हैं लेकिन दूरी का यहां भी ख्याल रखना होगा। पंडित वैभव एक रास्ता और सुझाते हैं। उनका कहना है कि कन्या पूजन जितना ही फल देती है बेसहारा पशुओं की सेवा। इस वक्त लॉकडाउन के चलते बेसहारा पशु सड़कों पर भूख से तड़प रहे हैं। यदि उनके लिए चारा का इंतजाम कर देंगे तो कन्या पूजन के जितना ही फल मिलेगा।
बता दें कि नवरात्रों में कुमारी पूजन (भोजन) से देवी को जितनी प्रसन्नता होती है उतनी प्रसन्नता जप-हवन-दान से भी नहीं होती है। यूं तो पूरे नवरात्रि ही कन्या पूजन करना चाहिए। प्रतिदिन एक-एक कन्या का पूजन बढ़ाते जाना चाहिए। इस प्रकार नवें दिन नौ कन्याओं का पूजन करना चाहिए। यदि प्रतिदिन कन्या-पूजन करने में असमर्थ हों तो अष्टमी या नवमी को कन्या-पूजन करना चाहिए। नौ कन्या और दो बटुक (बालकों) का पूजन आवश्यक है एक गणेशजी के निमित्त और दूसरा भैरवजी के निमित्त। कन्या-पूजन करते समय धन की कंजूसी नहीं करनी चाहिए। एक वर्ष की अवस्था वाली कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि उसे गंध व स्वाद का ज्ञान नहीं होता है।
आयु के अनुसार होता है देवी का वास और फल
कुमारी– दो वर्ष की कन्या ‘कुमारी’ कहलाती है।
पूजन का फल– दु:ख और दारिद्रय के नाश के लिए ‘कुमारी’ की पूजा करनी चाहिए। इस पूजन से शत्रु का शमन और धन, आयु और बल की वृद्धि होती है।
पूजा का मन्त्र– जो ब्रह्मादि देवताओं की भी लीलापूर्वक रचना करती है, उन कुमारी देवी की मैं पूजा करता हूँ।
रिमूर्ति– तीन वर्ष की कन्या को ‘त्रिमूर्ति’ कहते हैं।
पूजन का फल– त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि मिलती है व धन-धान्य व पुत्र-पौत्रों की वृद्धि होती है।
पूजा का मन्त्र– जो सत्व, रज और तम तीन गुणों से तीन रूप धारण करती हैं और तीनों कालों में व्याप्त हैं, उन त्रिमूर्ति की मैं पूजा करता हूँ।
कल्याणी– चार वर्ष की कन्या ‘कल्याणी’ कहलाती है।
पूजन का फल– कल्याणी का पूजन विद्या, विजय, राज्य एवं सुख की कामना पूर्ण करने वाला है।
पूजा का मन्त्र– पूजित होने पर जो भक्तों का कल्याण और सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं, उन कल्याणी देवी की मैं पूजा करता हूं।
रोहिणी– पांच वर्ष की कन्या ‘रोहिणी’ कहलाती है।
पूजन का फल– रोगों के नाश के लिए पांच वर्ष की कन्या रोहिणी की पूजा करनी चाहिए।
पूजा का मन्त्र– जो सभी प्राणियों के संचित कर्मों रूपी बीज का रोपन करती हैं, अर्थात् जैसे एक बीज से वृक्ष का निर्माण होता है, वैसे ही एक शुभ कर्म का अनन्त गुना फल देने वाली रोहिणी देवी का मैं पूजन करता हूं।
कालिका– छ: वर्ष वाली कन्या ‘कालिका’ कहलाती है
पूजन का फल– कालिका का पूजन करने से शत्रु का शमनहोता है।
पूजा का मन्त्र– जो प्रलयकाल में अखिल ब्रह्माण्ड को अपने में विलीन कर लेती हैं, उन देवी कालिका की मैं पूजा करता हूँ।
चण्डिका– सात वर्ष की कन्या ‘चण्डिका’ कहलाती है।
पूजन का फल– चण्डिका की पूजा से ऐश्वर्य और धन की प्राप्ति होती है।
पूजा का मन्त्र– जो चण्ड-मुण्ड का संहार करने वाली हैं और जिनकी कृपा से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं, उन चण्डिका देवी की मैं पूजा करता हूँ।
शाम्भवी– आठ वर्ष की कन्या ‘शाम्भवी कहलाती है।
पूजन का फल– किसी को मोहित करने, दुख-दारिद्रय और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने के लिए शाम्भवीरूप कन्या का पूजन करना चाहिए।
पूजा का मन्त्र– वेद जिनके स्वरूप है व भक्तों को सुखी करना जिनका स्वभाव है, ऐसी देवी शाम्भवी की मैं पूजा करता हूं।
दुर्गा– नौ वर्ष की कन्या को ‘दुर्गा’ कहते हैं।
पूजन का फल– दुष्टों व शत्रुओं का संहार करने के लिए व किसी कठिन कार्य को सिद्ध करने के लिए ‘दुर्गा’ पूजन करना चाहिए। दुर्गा रूपी कन्या के पूजन से मनुष्य को पारलौकिक सुख भी प्राप्त होता है।
पूजा का मन्त्र– जो भक्तों को सदा संकट से बचाती हैं, दु:ख दूर करना ही जिनका मनोरंजन है, उन देवी दुर्गा की मैं पूजा करता हूं।
सुभद्रा– दसवर्षीय कन्या को ‘सुभद्रा’ कहा गया है।
पूजन का फल– सुभद्रा के पूजन से सभी प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं।
पूजा का मन्त्र– जो देवी पूजित होने पर भक्तों का कल्याण करती हैं, उन अशुभविनाशिनी देवी सुभद्रा की मैं पूजा करता हूँ।
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