रात्रि में क्यों की जाती है भगवान शिव की आराधना

 जाने शिवरात्रि का रहस्य 


गोरखपुर। सभी देवताओ का पूजन, उपासना इत्यादि प्रायः दिन में ही होता है, परन्तु भगवान शिव की आराधना रात्रि में क्यों की जाती है। भगवान शिव को रात्रि क्यों प्रिय है, वह भी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि ही क्यों मनाया जाता है?



इस जिज्ञासा का समाधान में आचार्य पं शरदचन्द्र मिश्र ने बताया कि भगवान शंकर संहार शक्ति और तमोगुण के अधिष्ठाता हैं, अतः तमोमयी रात्रि से उनका लगाव (स्नेह) होना स्वाभाविक है। उन्होंने बताया कि रात्रि संहार काल की प्रतिनिधि है। रात्रि का आगमन होते ही सर्व प्रथम प्रकाश का संहार, जीवों की दैनिक चेष्टाओं का संहार और अन्त में निद्रा द्वारा चेतनता का संहार होकर सम्पूर्ण विश्व संहारिणी रात्रि की गोंद में गिर जाता है। ऐसी स्थित में प्राकृतिक दृष्टि से शिव का रात्रि प्रिय होना सहज ही हृदयंगम हो जाता है। यही कारण है कि भगवान शिव की आराधना न केवल इस रात्रि में ही वरन सदैव प्रदोष  (रात्रि के प्रारंभ होने) के समय मे की जाती है।



फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी का रहस्य


फाल्गुन मास की शिवरात्रि महाशिव रात्रि के नाम से जानी जाती है। अमावस्या के दुष्प्रभाव से बचने के लिए उसके एक दिन पूर्व चतुर्दशी को उपासना की जाती है। वर्ष के अन्तिम मास चैत्र से पहले (एक माह पूर्व) इसका विधान है। रूद्रों की ग्यारह संख्या होने के कारण इस पर्व का 11 वें मास (फाल्गुन) में सम्पन्न होना इस व्रतोत्सव के रहस्य पर प्रकाश डालता है। तामसी शक्तियों के उपशमनार्थ भगवान शिव की पूजा का विधान है।



आचार्य पं शरदचन्द्र मिश्र


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