ढोलक की थाप और मंजीरे की झंकार के साथ उड़ते हैं अबीर-गुलाल

हिंदू-मुस्लिम मिलकर एक दूसरे को लगाते हैं रंग-गुलाल



होली या रंगपंचमी का त्योहार उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर अलग-अलग अंदाज से मनाया जाता है। जहां मथुरा, वृदांवन और बरसाने की लट्ठमार होली विश्व भर प्रसिद्ध हैं वहीं, बाराबंकी में सूफी संत हाजी वरिश अली शाह की दरगाह पर भी होली खेली जाती है। यहां हिंदू-मुस्लिम मिलकर एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर इस त्योहार को खुशी-खुशी मनाते हैं। उत्तरप्रदेश के ही बुंदेलखंड इलाके में फागुन के महीने में गांव की चौपालों में फाग की अनोखी महफिलें जमती हैं, जिनमें रंगों की बौछार के बीच गुलाल-अबीर से सने चेहरों वाले फगुआरों के होली गीत (फाग) जब फिजा में गूंजते हैं, तो ऐसा लगता है कि श्रृंगार रस की बारिश हो रही है। फाग के बोल सुनकर बच्चे, जवान व बूढ़ों के साथ महिलाएं भी झूम उठती हैं। फाग-सी मस्ती का नजारा कहीं और देखने को नहीं मिलता है। सुबह हो या शाम गांव की चौपालों में सजने वाली फाग की महफिलों में ढोलक की थाप और मंजीरे की झंकार के साथ उड़ते हुए अबीर-गुलाल के साथ मदमस्त किसानों बुंदेलखंडी होली गीत (फाग) गाने का अंदाज-ए-बयां इतना अनोखा और जोशीला होता है कि श्रोता मस्ती में चूर होकर थिरकने, नाचने पर मजबूर हो जाते हैं।


रंगपंचमी पर बनते हैं खास पकवान 



मध्यप्रदेश में रंगपंचमी पर बड़ी-बड़ी गेर का आयोजन किया जाता है। जिसमें सड़कों पर रंग मिश्रित सुगंधित जल छिड़का जाता है। सूखे रंगों होली खेलकर और एक-दूसरे पर रंग उड़ेलकर इस त्योहार का आनंद उठाया जाता है। मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के इन दिनों आदिवासी इलाकों में भगोरिया बेहद धुमधाम से मनाया जाता है। यहां होली के त्योहार और रंगपंचमी पर खास पकवान बनाए जाते हैं। अधिकतर घरों में इस दिन श्रीखंड और भजिए, आलूबड़े, भांग की ठंडाई लुत्फ उठाया जाता है। कई घरों में पूरनपोली तो कई घरों में गुजिया, पपड़ी बनाई जाती है। मालवा क्षेत्र में भी होली मनाने का अंदाज अलग है है खास तौर पर इंदौर नगर में होली जुलूस निकालने की पुरानी परंपरा है, जिसे कहा जाता हैं। इस गेर के जुलूस में बैंड, बाजे, नाचना, गाना सबकुछ शामिल होता हैं। बड़े टैंकों में रंगीन पानी भर कर जुलूस के तमाम रास्ते भर लोगों पर रंग डाला जाता है। जुलूस में सभी धर्म लोग शामिल होते हैं।


सूखे रंग के गुलाल की होली



महाराष्ट्र में खास तौर पर धुलेंडी के बाद पंचमी के दिन रंग खेलने की परंपरा है। यहां विशेष कर सामान्य रूप से सूखे रंग के गुलाल से होली खेली जाती है। भोजन में पूरनपोली बनाने का खास महत्व होता है। उसके साथ आमटी, चावल और पापड़ आदि तलकर खाने की परंपरा है। कोंकण में इसे शमिगो नाम से मनाया जाता है।


नारंगी और फिरोजी रंग उड़ाने की परंपरा


राजस्थान का रंग पंचमी में यहां विशेष रूप से इस अवसर पर लाल, नारंगी और फिरोजी रंग हवा में उड़ाने की परंपरा हैं। यहां जैसलमेर के मंदिर महल में लोक नृत्यों में डूबा वातावरण देखने का अपना अलग ही मजा है।


300 वर्षों से अधिक समय से जारी लट्ठमार होली की परंपरा



छत्तीसगढ में देश भर में वैसे तो बरसाने की लट्ठमार होली प्रसिद्ध है, लेकिन जांजगीर से 45 किलोमीटर दूर पंतोरा गांव में प्रति वर्ष धूल पंचमी यानी रंगपंचमी के दिन कुंआरी कन्याएं गांव में घूमघूम कर पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं। इस मौके पर गांव से गुजरने वाले हर पुरुष को लाठियों की मार झेलनी पड़ती है, चाहे वह कोई भी हो, फिर वह सरकारी कर्मचारी हो या पुलिस। करीब 300 वर्षों से अधिक समय से जारी यहां की लट्ठमार होली अब यहां की परंपरा बन गई हैं।


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