- परिवार नियोजन मैनुअल्स एवं दिशा-निर्देश संबंधी अभिमुखीकरण कार्यशाला का आयोजन
- प्रभारी चिकित्साधिकारियों, एचईओ, एआरओ, बीसीपीएम, बीपीएम को दी गईं अहम जानकारियां
गोरखपुर। स्वास्थ्य विभाग ने उत्तर प्रदेश टेक्निकल सपोर्ट यूनिट (यूपीटीएसयू) के सहयोग से मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय के प्रेरणा श्री सभागार में 29 जनवरी 2020 बुधवार को एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। परिवार नियोजन मैनुअल्स एवं दिशा-निर्देश संबंधी इस अभिमुखीकरण कार्यशाला की अध्यक्षता सीएमओ डॉ. श्रीकांत तिवारी ने की। अपने संबोधन में सीएमओ ने कहा कि नसबंदी के लिए निर्धारित सेवा दिवस (एफडीएस) पर टीम भावना से कार्य होना चाहिए। कार्यशाला में जनपद के सभी प्रभारी चिकित्साधिकारियों, एचईओ, एआरओ, बीपीएम और बीसीपीएम को परिवार नियोजन से जुड़े सभी पहलुओं पर समुदाय हित की अहम जानकारियां दी गईं।
सीएमओ ने कहा कि निर्धारित सेवा दिवस पर प्रभारी चिकित्साधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह सभी तैयारियां पूरी रखें और खुद पंजीकरण, परामर्श, क्लाइंट चिन्हीकरण, पैथालॉजी टेस्ट और भुगतान से संबंधित पांचों पटल की गुणवत्तापूर्ण सेवा सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा कि एफडीएस पर सर्जन के अलावा एक एमबीबीएस चिकित्सक की उपलब्धता अवश्य होनी चाहिए। एफडीएस के दिन एलीवेशन के लिए अलग से स्टॉफ दिया जाए। आशा कार्यकर्ताओं को प्रेरित करें कि वह योग्य लाभार्थियों को स्वास्थ्य केंद्र तक लाएं। सीएमओ ने पुरुष नसबंदी के लाभार्थियों को प्रेरित कर इनकी संख्या बढ़ाने पर भी जोर दिया।
अपर मुख्य चिकित्साधिकारी आरसीएच डॉ. नंद कुमार ने कहा कि नसबंदी के लाभार्थी का चिन्हीकरण करते समय सुनिश्चित कर लिया जाए कि वह गर्भवती न हो, मासिक धर्म से सात दिन के भीतर की समयावधि हो, उम्र न्यूनतम 22 वर्ष व अधिकतम 49 वर्ष हो, दम्पत्ति में से किसी की नसबंदी न हुई हो, मानसिक तौर पर स्वस्थ हो अथवा उसका लीगल अभिभावक मौजूद रहे, लाभार्थी का पहला बच्चा कम से कम 12 माह की उम्र पूरी कर चुका हो। उन्होंने कहा कि गुणवत्तापूर्ण सेवा के लिए आवश्यक है कि एफडीएस के दिन पांच अलग-अलग काउंटर कार्य करें।
जिला कार्यक्रम प्रबंधक पंकज आनंद और जिला स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी केएन बरनवाल ने भी कार्यशाला को संबोधित किया। इस अवसर पर उप जिला स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी सुनीता पटेल, सर्जन डॉ. धनंजय चौधरी, डॉ. अवधेश, प्रभारी चिकित्साधिकारी डॉ. अश्वनी चौरसिया, डॉ. संतोष वर्मा, डॉ. धनंजय कुशवाहा, बीसीपीएम विकास प्रमुख तौर से मौजूद रहे।
इन बिंदुओं पर हुई चर्चा
- पोस्टपार्टम (प्रसव के तुरंत बाद) फैमिली प्लानिंग से समुदाय को जोड़ कर तीन में से एक मातृ मृत्यु को रोका जा सकता है।
- आईयूसीडी मासिक धर्म से 12 दिन के भीतर, जबकि नसबंदी सात दिन के भीतर करना उचित है।
- आईयूसीडी में फॉलो अप अवश्य किया जाए। पहला फॉलो शुरू के तीन माह में प्रत्येक माह और उसके बाद हर तीन-तीन महीने पर होना चाहिए।
· नसबंदी में लाभार्थी का पारिवारिक इतिहास व क्लिनिकल हिस्ट्री जानना बेहद अहम है, इसके बाद ही सर्जरी की जाए।
क्षतिपूर्ति की होर्डिंग लगाएं
अपर मुख्य चिकित्साधिकारी ने कार्यशाला के दौरान कहा कि नसबंदी में क्षतिपूर्ति की नयी राशि के संबंध में सार्वजनिक स्थानों पर होर्डिंग लगाना व वाल पेटिंग कराना सभी को सुनिश्चित करना चाहिए। उन्होंने बताया कि नसबंदी के 0-7 दिन के भीतर मौत पर 4 लाख रुपये, 8 दिन से 1 माह के भीतर मौत पर एक लाख रुपये देने का प्रावधान आया है लेकिन ऐसे मामलों में पोस्टमार्टम आवश्य है। नसबंदी के दौरान कोई दिक्कत होने पर 50 हजार तक की दवा का वास्तविक क्लेम किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि नसबंदी फेल होने पर 60 हजार रुपये देने का प्रावधान है लेकिन क्लेम गर्भावस्था के दौरान ही 90 दिन के भीतर होना चाहिए।
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