कृष्ण ही गुरु और सखा 


कृष्ण ही गुरु और सरवा कृष्ण को ईश्वर मानना अनुचित है, किंतु इस धरती पर उनसे बड़ा कोई ईश्वर तुल्य नहीं है, इसीलिए उन्हें पूर्ण अवतार कहा गया है। कृष्ण ही गुरु और सखा हैं। कृष्ण ही भगवान है अन्य कोई भगवान नहीं। कृष्ण हैं राजनीति, धर्म, दर्शन और योग का पूर्ण वक्तव्य। कृष्ण को जानना और उन्हीं की भक्ति करना ही भक्ति मार्ग है। अन्य की भक्ति सिर्फ भ्रम, भटकाव और निर्णयहीनता के मार्ग पर ले जाती है। भजगोविंदम मूढ़मते।


कृष्ण जन्म : पुराणों अनुसार आठवें अवतार के रूप में विष्णु ने यह अवतार आठवें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के अट्ठाईसवें द्वापर में श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से मथुरा के कारागर में जन्म लिया था। उनका जन्म भाद्रपद के कष्ण पक्ष की रात्रि के सात महर्त निकल गए और आठवाँ उपस्थित हुआ तभी आधी रात के समय सबसे शुभ लग्न उपस्थित हुआ। उस लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी। रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व (अर्थात आज से 5121 वर्ष पूर्व) को हुआ हुआ। ज्योतिषियों अनुसार रात 12 बजे उस वक्त शून्य काल था।


कृष्ण जीवन : श्रीकृष्ण का जीवन, जैसा कि महाभारत में वर्णित है वही इतिहास सिद्ध है बाकी सभी विस्तार, अलंकार और श्रृंगार की बातें हैं। वेदों के गोपी, गोपियों और रास का गलत अर्थ निकाले जाने के कारण भागवत और ब्रह्मवैवर्त सहित अन्य पुराणों में उनके जीवन चरित्र को श्रृंगारिक रूप दिया गया है। श्रीकृष्ण ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं, जो अपने कमों से मनुष्य से भगवान या महामानव हो गए न कि ईश्वर। न वे सृष्टि रचयिता हैं और न ही सृष्टिपालक। वे तो महामानव हैं। महर्षि सांदिपनी के आश्रम में ली थी शिक्षा : योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने वेद और योग की शिक्षा और दीक्षा उज्जैन स्थित महर्षि सांदिपनी के आश्रम में रह कर हासिल की थी।


कृष्ण लीलाएँ


कृष्ण के जीवन में बहुत रोचकता और उथलपुथल रही है। बाल्यकाल में वे दुनिया के सर्वाधिक नटरवट बालक रहे, तो किशोर अवस्था में गोपियों के साथ पनघट पर नृत्य करना और बाँसुरी बजाना उनके जीवन का सबसे रोचक प्रसंग है। कुछ और बड़े हुए तो मथुरा में कंस का वध कर प्रजा को अत्याचारी राजा कस से मुक्त करने के उपरांत कष्ण ने अपने माता-पिता को भी कारागार से मुक्त कराया। इसके अलावा कृष्ण ने पूतना, शकटासुर, यमलार्जुन मोक्ष, कलिय-दमन, घेनुक, प्रलंब, अरिष्ट आदि राक्षसों का संहार किया था। श्रीकृष्ण ही ऐसे थे जो इस पृथ्वी पर सोलह कलाओं से पूर्ण होकर अवतरित हुए थे और उनमें सभी तरह की शक्तियाँ थी।


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