अर्जुन को श्रीकृष्ण के गीता उपदेश से मिली मोक्ष

मोक्षदा एकादशी और गीता जयन्ती व्रत से लोभ, मोह, मत्सर का क्षय हो जाता है


एकादशी तिथि का मान 8 दिसम्बर दिन रविवार को प्रातःकाल 7 बजकर 24 मिनट तक, रेवती नक्षत्र सम्पूर्ण दिन और अश्विनी नक्षत्र सम्पूर्ण दिन और रात्रिशेष 3 बजकर 16 मिनट, वरियान योग भी सांयकाल 5 बजकर 45 मिनट और भणिक तथा वव करण है। आचार्य शरद चंद्र मिश्र के अनुसार रविवार के दिन अश्विनी नक्षत्र होने से आनन्द नामक महाऔदायिक योग बन गया है। सूर्योदय के समय  एकादशी तिथि होने से मोक्षदा एकादशी का व्रत इसी दिन मान्य रहेगा। यह व्रत मार्गशीर्ष  (अगहन) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है।मोक्षदा एकादशी के दिन गीता जयन्ती भी मनाई जाती है। उल्लेखनीय है कि कुरूक्षेत्र के युद्ध- स्थल पर कर्म से विमुख हुए अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था। ऐसी मान्यता है कि जिस प्रकार अर्जुन का मोहक्षय हुआ था, उसी प्रकार इस एकादशी का व्रत करने से सभी श्रद्धालुओं के लोभ, मोह, मत्सर व समस्त पापों का क्षय हो जाता है तथा व्रती को इच्छा अनुकूल फल प्राप्त होतें है। इसलिए यह मोक्षदा एकादशी व्रत कहलाती है। 

पूजन विधि 

इस दिन स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर भगवान दामोदर का गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य आदि षोडषोपचार विधि से पूजन करें। साथ ही साथ तुलसी की मंजरियों से भगवान के विग्रह को सजायें। मांगलिक गायन, वाद्यों से पूजन व आरती करके श्रीमद् भगवत गीता के पाठ का भी विधान है ।व्रत के दिन फलाहार करें और अन्न का सेवन त्याग दें ।मिथ्या भाषण, चुगली, दुष्कर्मों के परित्याग का संकल्प करें ।ब्राह्मणों को भोजन व दक्षिणा दान अवश्य करें ।

ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार-व्रत से एक दिन पूर्व अर्थात 

मोक्षदा एकादशी और गीता जयन्ती है 8 दिसम्बर दिन रविवार को इस व्रत को करने से व्रती के लोभ, मोह, मत्सर व समस्त का क्षय हो जाता है।

मोक्षदा एकादशी के दिन पूजन विधि-इस दिन स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर भगवान दामोदर का गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य आदि षोडषोपचार विधि से पूजन करें। साथ ही साथ तुलसी की मंजरियों से भगवान के विग्रह को सजायें। मांगलिक गायन, वाद्यों से पूजन व आरती करके श्रीमद् भगवत गीता के पाठ का भी विधान है। व्रत के दिन फलाहार करें और अन्न का सेवन त्याग दें ।मिथ्या भाषण, चुगली, दुष्कर्मों के परित्याग का संकल्प करें। ब्राह्मणों को भोजन व दक्षिणा दान अवश्य करें।

 ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार-व्रत से एक दिन पूर्व अर्थात दशमी के दिन मध्याह्न में केवल एक बार मूंग की रोटी- दाल सेवन के अनन्तर दूसरे दिन  (व्रत के दिन) व्रतोपवास और अर्चन करें ।इसी तरह रात्रि में जागरण करके द्वादशी को पारण के बाद एकभुक्त  (केवल एक समय ही भोजन) ही रहे। विष्णुधर्मोत्तर एवं व्रतोत्सव ग्रन्थ के अनुसार व्रत रखकर पारण के दिन भगवान नारायण का षोडषोपचार पूजन कर अन्नकूट के समान अनेक प्रकार के भोजन पदार्थ बनाकर शालिग्राम को अर्पण करें और प्रसाद के अभिलाषा भगवत् भक्तों को आदर और प्रेम के साथ प्रसाद वितरण करें और बाद में पारण करें।

व्रत माहात्म्य 

प्राचीन काल में चम्पक नामक एक सुन्दर नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। क्या बड़ा धर्मात्मा था। एक दिन उसने देखा कि उसके पिता को नरक में घोर यातना दी जा रही है। पिता को अधोयोनि में पड़े देखकर उसने यह वृतांत ब्राह्मणों को सुनाया और जानना चाहा कि दान, तप या व्रत, जिस किसी भी रीति से मेरे पिता को मुक्ति मिले, वैसी विधि बताएं।विद्वान ब्राह्मणों ने उन्हे मुनि शार्दूल के पास जाने के लिए कहा। राजा ने जब अपने पिता की मुक्ति के विषय में प्रश्न किया तो उन्होंने कहा-"तुम यदि उनके लिए मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का पुण्य दान कर दो, तो उसके प्रभाव से उनको मोक्ष मिल जायेगा। मुनि की सलाह से राजा ने इस एकादशी के दिन विधिपूर्वक व्रत किया और उससे अर्जित समस्त पुण्य अपने पिता को दे दिए। उसी समय स्वर्ग से फूलों की वर्षा होने लगी और राजा वैखानस के पिता अपने पुत्र को ढेरों आशिर्वाद देते हुए स्वर्गलोक चले गये। तभी से यह मान्यता है कि जो मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, वह अपने कुटुम्ब सहित समस्त सांसारिक सुखों का उपभोग करता हुआ अन्त में मोक्ष को प्राप्त करता। वह प्रभु के सेवा का अधिकारी बनता है।

दशमी के दिन मध्याह्न में केवल एक बार मूंग की रोटी-दाल सेवन के अनन्तर दूसरे दिन (व्रत के दिन) व्रतोपवास और अर्चन करें। इसी तरह रात्रि में जागरण करके द्वादशी को पारण के बाद एकभुक्त (केवल एक समय ही भोजन) ही रहें।

विष्णुधर्मोत्तर एवं व्रतोत्सव ग्रन्थ के अनुसार व्रत रखकर पारण के दिन भगवान नारायण का षोडषोपचार पूजन कर अन्नकूट के समान अनेक प्रकार के भोजन पदार्थ बनाकर शालिग्राम को अर्पण करें और प्रसाद के अभिलाषा भगवत् भक्तों को आदर और प्रेम के साथ प्रसाद वितरण करें और बाद में पारण करें।

 

 

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