अक्षय नवमी के दान से अक्षय फल की प्राप्ति

अक्षय नवमी के दिन दान का है अक्षय फल (पितर गणों की प्रसन्नता प्राप्ति एवं दरिद्रता दूर करने वाला है अक्षय नवमी)  कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी "अक्षय नवमी "कहलाती है। यह 5 नवंबर दिन मंगलवार को है। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 30 मिनट और नवमी तिथि का मान सम्पूर्ण दिन एवं रात्रि पर्यन्त, अगले दिन 8 बजकर 9 मिनट तक भी।धनिष्ठा नक्षत्र पूरे दिन और रात और गण्ड और वृद्धि योग है ।अगले दिन 6 घटी (2 घंटा 24 मिनट )से कम नवमी तिथि होने से व्रत पूर्व दिन 5 नवम्बर को ही मान्य है ।इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का माहात्म्य बताया गया है ।ऐसा माना जाता है कि आॅवले में बिल्व और तुलसी दोनो के गुण विद्यमान है और भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय भी है ।इसलिए इस दिन इसकी पूजा करने का विधान है ।पुराणों में कहा गया है कि इस दिन जो पुण्य या उत्तम कार्य किये जाते उसका फल जीवन भर मिलता है ।इस दिन प्रातः काल भगवान विष्णु और शिव जी के दर्शन करने से अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है ।शास्त्रों के अनुसार इस दिन द्वापर युग का आरम्भ हुआ था ।इस दिन भगवान विष्णु ने कुष्माण्ड दैत्य को मारा था ।उसके रोम  (रोंये) से कुष्माण्ड की बेल उत्पन्न हुई थी ।इसी कारण से इस दिन कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल मिलता है ।इस दिन गन्ध, पुष्प और अक्षतों से कुष्माण्ड का पूजन करना चाहिए और इसी दिन से तुलसी पूजन की तैयारियाँ करनी प्रारम्भ करनी चाहिए ।रामार्चन चन्द्रिका- -में तो यहाॅ तक कहा गया है कि जो इस दिन तुलसी का अर्चन करते हैं, उसे शान्ति, सद्भाव, सुख और वंशवृद्धि के साथ पुनर्जन्म का भय नही रहता है और वह मोक्ष का अधिकारी हो जाता है।


-------व्रत विधान- --------


इस दिन प्रातः काल स्नानादि के अनन्तर दाहिने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का संकल्प करें। "अद्य अमुक नामाहं ममाखिल पाप क्षय पूर्वक धर्मार्थ काम मोक्ष सिद्धि द्वारा श्री विष्णु प्रीतये धात्री मूले श्री विष्णुपूजनं, धात्री पूजनं च करिष्ये ।" ऐसा संकल्प कर धात्री वृक्ष  (आॅवले) के नीचे पूर्वाभिमुख होकर- -"श्री धात्रयै नमः " मन्त्र से आवाहनादि षोडषोपचार पूजन करें। पुनः इसी मन्त्र का उच्चारण करते हुए आॅवले के वक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें "मेरे वंश में अपुत्रादिक जो भी मेरे पितरगण हैं, वे मेरे द्वारा प्रदत्त इस तर्पण के पदार्थ को ग्रहण करें और तृप्त होवें ।" पितरों को तृप्त करने के पश्चात वृक्ष के तने में सूत्र का आवेष्टन करें अर्थात सूत लपेटते जाॅय। इसे 21 या 27 बार लपेटा जाय। ऐसी मान्यता है कि आॅवले के वृक्ष में भगवान गोविन्द की सहचरी माता लक्ष्मी का निवास है ।अमृत प्रदान करने वाली पराशक्ति का सानिध्य इस पवित्र वृक्ष में है। "दामोदर निवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नमः ।सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमो नमः। "इसके अनन्तर आॅवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन करायें और अन्त में स्वयं भी आॅवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन ग्रहण करें । इस दिन एक पका हुआ कुम्हड़ा  (कुष्माण्ड) लेकर उसके अन्दर रत्न, सुवर्ण, रजत या सिक्का ही लेकर निम्न संकल्प करें "ममाखिल पाप क्षय पूर्वक सुख सौभाग्यादि उत्तरोत्तर अभिवृद्धये कुष्माण्ड दानं करिष्ये। "तदन्तर विद्वान और सदाचारी ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित दान कर दें और प्रार्थना करें। "हे कुष्माण्ड तुम ब्रह्मा के द्वारा निर्मित बहुत बीज वाले हो, मै अपने पितरों के उद्धार के लिए और भगवान विष्णु के प्रीति के लिए दे रहा हूँ ।-" पितरों के शीत निवारण के लिए यथाशक्ति कम्बल इत्यादि उनी कपड़ा सत्पात्र ब्राह्मण को दें । यह अक्षय नवमी, धात्री नवमी तथा कुष्माण्ड नवमी कहलाती है ।घर के सामने आॅवले का आरोपण करना चाहिए। यह घर के पास आॅवले का वृक्ष न हो तो किसी बागीचे में जाकर पूजा, दानादिक कार्य करें अथवा गमले में आॅवले का पौधा लगाकर ही यह कार्य सम्पन्न कर लें ।अक्षय नवमी का दिन शुभ कार्यों के सम्पादन हेतु भी उत्तम दिवस के रूप में मान्य है ।मुहुर्ताभाव में भी अनेक शुभ और मांगलिक कार्य इस दिन सम्पादित किये जा सकते हैं ।इस दिन के दानादिक क्रिया से अर्चक को अक्षय फल की प्राप्ति होती है।


आचार्यपं शरदचन्द्र मिश्र


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