राम कथा के परम् प्रताप से आज गोरखपुर में ऐसा दिव्य वातावरण बन गया है कि स्वर्ग वालों को भी ईष्या हो रही है। वे स्वर्ग से छुप-छुप कर देख रहे हैं कि ये गोरखपुर में क्या अद्भुत हो रहा है : बापू
बापू ने कहा हमारे हनुमान जी मानस के महायोगी है
गोरखपुर। गोरखनाथ मंदिर व श्रीराम कथा प्रेम यज्ञ समिति के तत्वावधान में ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी की स्मृति में आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के आठवें दिन मानस कथा मर्मज्ञ मोरारी बापू ने श्रोताओं से सीधा संवाद करते हुए कहा कि मानस में और नाथ संहिता में जोगी और नाथ शब्द 32 बार आया है। लेकिन योगेंद्र के मिलते ही ये 33 बार हो जाता है। महाभारत और भागवत गीता में भी योगी शब्द 32 बार ही आया है। ये मात्र एक संयोग नहीं है। इसके पीछे कोई सात्विक एवं दैविक संकेत है।
बापू ने मानस में आए जोगी शब्द के 32 स्वरूपों का चैपाई के माध्यम से गुणगान करते हुए आज कथा पंडाल को व्यासपीठ से जोगीमय कर जागृत कर दिया। उन्होंने मानस योगी के 32 स्वरूपों की मानस मणिका बना कर श्रोताओं को पहना दिया।
बापू ने बालकांड से लेकर उत्तर काण्ड तक में आये प्रत्येक मानक जोगी को व्यासपीठ से ध्यान किया। बापू ने कहा हमारे हनुमान जी मानस के महायोगी है।
बापू ने सात्विक, तात्विक चर्चा करते हुए बताया कि मैं शुरुआत में प्राथमिक विद्यालय में 10 वर्ष शिक्षक था, तो मुझे पता है कि क्लास (कक्षा) कैसे लेनी है। मैं आज उसी मूड में हूं। पहले मेरी कक्षा में 40 विद्यार्थी थे, आज 40000 आते हैं। पर जब महाज्ञानी भुसुण्डी जी कथा सुनाते हैं तो समस्त ब्रहमांड कथा सुनने आ जाते हैं।
बापू ने कहा राम कथा के परम् प्रताप से आज गोरखपुर में ऐसा दिव्य वातावरण बन गया है कि स्वर्ग वालों को भी ईष्या हो रही है। वे स्वर्ग से छुप-छुप कर देख रहे हैं कि ये गोरखपुर में क्या अद्भुत हो रहा है।
बापू ने कहा माफिया लोग पांच से सात के झुंड में आते हैं और एक को किडनैप कर ले जाते हैं। मैं तो मैं तो अकेला पूरे गोरखपुर को किडनैप कर चला जाऊंगा।
बापू ने कहा आज संसार में किसी वस्तु की कमी है तो वह है प्रेम। श्रोता भाईयो-बहनों इस समस्त संसार में आप प्रेम का संदेश दो प्रेम युक्त कर दो संसार को।
बापू ने “हर दिल जो प्यार करेगा वह गाना गाएगा, दीवाना सैकड़ों में पहचाना जाएगा” गीत गाकर समस्त कथा पंडाल को मंत्रमुग्ध कर। समस्त श्रोतागण भाववश उठ खड़े हुए और बापू के भजन गीत पर मधुर संगीत पर नृत्य करने लगे।
राम का नाम कथा में लेते हैं तो लोक-लाज छूट जाता है। मरीच का छल छूट जाता है। अहिल्या की मुढता छूट गइ है। पाप, ताप व संताप छूट गया। जनकपुरी में राम को देखकर मिथिला नरेश का ब्रह्मज्ञान छूट गया।
जब धनुष टूटा तो परशुराम का अभिमान टूट गया और घमंडी राजाओं और राजकुमारों का अभिमान भी टूट गया। ये महिमा है प्रभु श्री राम की इनके दर्शन मात्र से संसार के समस्त विकार पीछे छूट जाते हैं। यह महामंत्र है।
पूज्य बापू ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा। हे युवा भाइयों, बहनों आप यहां से कुछ और लेना अथवा मत लेना लेकिन रामकथा का परम प्रसाद जरूर लेना। प्रसाद तीन प्रकार के होते हैं। ग्रंथ प्रसाद, ग्रह प्रसाद, गुरु प्रसाद।
बापू ने कहा तीनों प्रसादों में सर्वश्रेष्ठ प्रसाद हैं। जब गुरु प्रसाद आता है। तो अन्य समस्त प्रसाद उसके पीछे-पीछे आ जाते हैं। बापू ने कहा कि मानस के बहुत से प्रसंगो में सत्य और असत्य एक दूसरे से चर्चा करते हुए नजर आते हैं। सुपर्णखा जीता जागता असत्य है परन्तु राम परमसत्य है। वहीं सुपर्णखा परमसत्य के सामने झूठ बोलती है बापू ने ज्योतिष विज्ञान को अवश्य विज्ञान बताते हुए कहा कि उसने बहुत अच्छा प्रकाश डाला है ग्रहों और ज्योतिष विज्ञान आप सभी को जब भी समय मिले आप जरूर इसका अध्ययन करें। परंतु हमे तो ऐसा ज्योतिष विज्ञान चाहिए, जो वर्तमान में हमें जीने की राह दिखाएं। अतीत तो कब का बीत चुका है और भविष्य में अभी बाद में विषय है। हमें तो वर्तमान की राह दिखाने वाला ज्योतिषि चाहिए। बापू ने बताया ग्रह स्वयं प्रसाद होता है। श्री राम के प्राकटय में भी ग्रहो ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। लेकिन ग्रह तो ग्रह ही है। हमें ग्रह की कोई खबर नहीं, हमें तो प्रभु श्रीराम के अनुग्रह की खबर है। बापू ने कहा ग्रह, ज्योतिष भी महत्वपूर्ण है। परंतु युवाओं आप अनुग्रह पर ध्यान दो। ग्रह स्वयं ही कट जाएंगे।
पूज्य बापू ने व्यासपीठ से हिंदी विभाग के अध्यक्ष के प्रश्न का उत्तर देते हुए बताया कि भर्तृहरी विषयी है उसने अपने भोग के लिये दूसरे का भोग लिया अर्थात उसने खुद के मनोरंजन के लिए मृग ( हिरण ) का वध कर दिया था । परंतु गोरखनाथ ने उसे उसकी गलती का प्रायश्चित करवाकर उसे दीक्षित किया। गोरखनाथ भर्तृहरी से कहा जब तू किसी मृतक को जीवित नहीं कर सकता तो तुम्हें किसी को मारने का अधिकार नहीं। मुझे देखो मैं अपनी सिद्धि साधना से मृतक को भी जीवन दे सकता हूं ,परन्तु मैं कभी किसी को नहीं मारता । योगी का कार्य और धर्म है विश्वकल्याण भर्तृहरी को अपनी गलती का एहसास हुआ। और बोला उठा हे प्रभु मुझे दीक्षित करें , गोरखनाथ बोले मैं तुझे दीक्षित जरूर करूंगा परंतु पहले तुम पंींगला माता से जाकर भिक्षा मांग कर ला । उज्जैन राज तुरंत माता से भिक्षा मांगने निकल पड़े । इस प्रकार गुरु गोरक्षनाथ नर्सरी के अज्ञानता को दूर किया ।इतनी महान है नवनाथ धारा।
बापू ने गोपीचंद को साधक बताया उन्होंने अपनी मां की आंखों के आंसू गिरने को अपना सबसे बड़ा पाप समझते हैं । गुरु मत्स्येन्द्रनाथ परम्सिद्व हैं परन्तु गुरु गोरखनाथ जी सिद्ध व शुद्व दोनों हैं । सिद्ध होना अच्छी बात है परंतु शुद्ध होना बड़ी महिमा का विषय है। बापू ने कहा मेरे युवा भाई बहनों आपने आज जो कथा सुनी उसमें केवल इतना याद रखना कि अगर आपकी वजह से आपके मां की आंख से आंसू आ जाए तो आपका जीवन व्यर्थ है आप पर धिक्कार है , आप अस्तित्वविहीन हैं यह जगत का सबसे बड़ा पाप है । बापू ने अगर योग भक्ति योग पाना है तो भक्ति के सभी चरणों से होकर गुजरना पड़ेगा । भक्ति कोई बुलेट ट्रेन नहीं है जो दिल्ली में बैठो और 2 घंटे में मुंबई पहुंचा दे । हनुमान जी चाहते तो एक ही छलाॅग में माता सीता तक पहुंच सकते थे परंतु वे रास्ते में सुरसा लंकिनी जैसे भक्ति मार्ग से गुजरते हुए माता सीता तक पहुंचे । माता सीता साक्षात स्वयं भक्ति हैं। अपनी इस यात्रा से हनुमान जी ने जगत को भक्ति मार्ग पर चलने का रहस्य बताया है । भक्ति लोकल ट्रेन की तरह है इसे प्राप्त करने के लिए हमें इसके प्रत्येक स्टेशन ( चरणों ) से गुजरना होगा ।
बापू ने पुनः नाथ परम्परा का स्मरण करते हुए बताया कि नाथ परम्परा में 12 वर्षों का बड़ा महत्व है । 12 वर्षों तक योगी लोगों ने हर तरह की कठिन से कठिन तपस्या की है। ऐसे गोरख और मत्स्येन्द्र के बीच जो प्रश्नोपनिषद है उसके एक प्रश्न में गोरक्ष ने गुरु से पूछा निवृत्ति किसे कहते हैं ? गुरुवर ने बताया जो जगत में रहकर अपनी जाति का विलोपित कर मानव मात्र से अपने आपको जोड़ ले और सामने वाले को पता भी ना लगे कि हम से अलग है लेकिन भीतर से अपने कर्म करता रहे वही निवृत्ति है । अपने ज्ञान की ज्योति से जगत को बिना बताए प्रकाशित करें यही सच्ची निवृत्ति है । गोरखनाथ ने पुनः प्रश्न किया धर्म और सत्य में क्या अंतर है ? गुरुवर ने बताया गोरख सत्य ही धर्म है और धर्म ही सत्य है। गोरख बोले गुरु जी मैं नहीं समझ पाया तब गुरुवर बोले गोरख परमात्मा ही सत्य है, और यही सत्य धर्म है । बापू ने बृहतारण्यक और गीतावली का कोड करते हुए कहा कि हे प्रभु हे साधु तेरे सामने कोई धर्म की बात करें तो समझना वह सत्य है । बापू ने कहा सत्य के सामने श्रुतिसम्यक वाचिक को न्योछावर कर सकता हूं । अर्थात जिस सत्य के कारण मुझे तेरे भक्ति से भी विमुख होना पड़े ऐसे सत्य को मैं आपके भक्ति पथ पर न्योछावर कर दूंगा। वाचिक सत्य आभासी व काल्पनिक सत्य है । परम सत्य के लिए इसे छोड़ा जा सकता है। गोरख ने मत्स्येन्दनाथ से प्रश्न किया मोक्ष और मुक्ति क्या है ? मत्स्येन्द्रनाथ ने बताया गोरक्ष, मोक्ष ज्योति है, दिया है, प्रकाश ह,ै और मुक्ति इसकी किरणें हैं , स्वयं तुलसीदास उत्तरकांड में ज्ञान रूपी प्रकाश को दीपक कहते हैं । बापू ने भजन गाया तू मिले दिल खिले और मिलने को क्या चाहिए इस भजन पर श्राताओं ने बापू के सुर से सुर मिलाया । और कथा पंडाल राम माधुर्य रस से उज्जवल हो उठा । गोरख ने मत्स्येन्दनाथ से पुनः प्रश्न किया बुद्धि का क्या लक्षण है ? बुद्धि के के पांच लक्षण है। पहला विवेक - बुद्धिमान वही है जो विवेकी है। दूसरा वैराग्य - इसका तात्पर्य नहीं कि व्यक्ति घर संसार का त्याग कर संयासी बन जाए। जिस प्रकार दही को मथनेे पर उसमें मथने वाले का बाल पड़ जाए तो उसको निकालना बड़ा सरल है, कष्टदायक नहीं है। अतः वैराग्य भी ऐसा होना चाहिए जिससे न तो परिवार को कष्ट हो न स्वयं आप को । तीसरा शांति - बुद्धिमान व्यक्ति शांत होता है वह व्याभिचार नहीं करता । चैथा संतोष - संतोषम परम सुखम। पाचवाॅ क्षमा - बुद्धिमान वह है जो अपराधी को क्षमादान दे।
बापू ने से कथा में किसी ने प्रश्न किया कि जब कथा शुरू होती है तो शंखनाद क्यों करते हैं ? बापू ने उत्तर दिया शंखनाद का शंख संम् व ख के जोड़ से बना है वह ध्वनि है जो हम सबका कल्याण करती है । बापू ने बताया कि कीर्तन की बड़ी महिमा है कीर्तन में स्वयं हरिनाम सम्मिलित हैं इसमें बड़ा कोई जप नहीं है । बापू ने आज की कथा प्रसाद का मीनू बताते हुए कि आज के प्रसाद में चावल, दाल फ्राई, मटर पनीर, आलू ,पूरी, रोटी, बेसन के लड्डू, बूंदी, अंचार व पापड़ है । अत्यंत हर्ष है कि कल 32000 लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। परंतु मेरा आप सभी से आग्रह है कि अन्य का अपमान ना करें क्योंकि उपनिषद में अन्य को ब्रह्मा माना गया है और अन्न का अपमान साक्षात ब्रह्म का अपमान है । बापू ने स्वच्छ भारत मिशन को याद दिलाते हुए कहा कि अस्वच्छता ना फैलाएं प्यार से भोजन ग्रहण करें इस बात का ध्यान रखें कि जल्दी भोजन करते के चक्कर में किसी वृद्ध अथवा बच्चे को कोई असुविधा ना हो।
शिव-धनुष भंग व सीता-राम विवाह प्रसंग का वर्णन करते हुए बापू ने कहा कि जब भी श्री राम, लक्ष्मण अपने गुरु विश्वामित्र के साथ मिथिला नरेश की राजधानी में प्रवेश करते हैं तो समस्त मिथिला वासी उन्हें देखकर मंत्रमुग्ध हो उठते हैं । ज्ञानी पुरुष दूर से जबकि बच्चे श्रीराम के समीप आकर व महिलाएं अट्टालिकाओं के ओट से श्रीराम व लक्ष्मण के अद्भुत रूप का दर्शन करते हैं । विश्वमित्र श्री राम लक्ष्मण के साथ विश्राम स्थल पहुंच जाते हैं जहां संध्यावंदन के क्रम में दोनों भाई गुरू के समीप बैठकर उपनिषद् पर चर्चा में गुरु की सेवा करते हैं । अगले दिन प्रातः गुरु विश्वामित्र की वंदना हेतु राम और लक्ष्मण पुष्प लेने के लिए वाटिका में जाते हैं उसी समय मां जानकी भी गौरी पूजने पुष्प वाटिका में आती है। जैसे ही सीता वाटिका में प्रवेश करती हंै तो उनके कटिभाग के करधनी, पैरों के नूपुर व हाथों के कंगन की ध्वनि से राम का ध्यान सीता मां की ओर चला जाता है । दोनों लोग एक दूसरे को देखते रह गए हैं। यहां करधनी संयम, नूपुर सदाचार व कंगन समर्पण का प्रतीक है। आचरण संयम व समर्पण की एक महत्वपूर्ण धुरी होती है, एक आभा होती है । जो स्वयं भगवान को भी आकर्षित करती है ।
स्वयंवर का दृश्य मंच पर विश्वामित्र राम लक्ष्मण के साथ विराजमान हैं स्वयंवर में खंड -खंड द्वीप-द्वीप से राजा व राजकुमार आए हुए हैं ,बीच में शिव का धनुष रखा हुआ है तभी मिथिला नरेश कहते हैं जो शूरवीर शिव के इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा मेरी पुत्री जानकी का विवाह उसी परमवीर से होगा । एक-एक कर सभी राजा महाराजाओं ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने का प्रयास किया पर प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर धनुष को तनिक भी हिला ना सके। इसे देखकर महाराजा जनक को संदेह हुआ कहीं मेरी पुत्री कुआंरी ना रह जाए। सभा को संबोधित करते हुए दुखी मन से कहा कि क्या यह धरती वीरों से शुन्य हो गई है ? क्या कोई भी ऐसा वीर नहीं जो इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा सके । यह बात सुन लक्ष्मण क्रोधित हो उठे और बोले अभी तक जब स्वयं श्रीराम और मैंने धनुष पर प्रत्यंचा का चढ़ाने का प्रयास नहीं किया तो आप यह बात व्यर्थ ही कर रहे हैं । तभी विश्वमित्र की आज्ञा पाकर श्री राम धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने हेतु धनुष की ओर समीप गए । श्रीराम ने बड़ी ही सरलता से धनुष को उठा लिया तथा प्रत्यंचा चढ़ाने के दौरान धनुष्य मध्य भाग से टूट गया । यह घटना इतनी तेजी से हुआ कि किसी को कुछ समझ नहीं आया तथा धनुष टूटने ध्वनि से तीनों लोक गुॅज उठे, सागर का छलक उठा, सुर असुर थर्रा गए । शिव धनुष भंग का समाचार पाकर हाथों में परशा धारण किए भगवान परशुराम प्रकट हुए, अत्यंत क्रोध में कहा कि हे जनक जिसने यह दुःसाहस किया है उसे दरबार से बिलग करो अन्यथा मैं यहां उपस्थित सभी राजाओं का वध कर दूंगा परंतु जब परशुराम ने राम की बुद्धि, रूप व प्रभाव को जान लिया तो अपने तपोभूमि चले गए। जनक ने विश्वामित्र के कहने पर राजा दशरथ को राम के स्वयंवर जीत लेने का संदेश भेजा , अपने सगे संबंधियों के साथ राजा दशरथ बारात लेकर जनकपुरी पहुॅंचे । सकुशल राम विवाह संपन्न हुआ तथा विश्वामित्र के कहने पर जनक के भाई की पुत्रियों का विवाह दशरथ के अन्य तीनों पुत्रों भरत शत्रुघ्न एवं लक्ष्मण के साथ कर दिए। बरात बहुत दिनों तक मिथिला रुकी । मिथिलावासी प्रेमवश जाने नहीं देते थे । मानस के इस प्रसंग को बापू ने अत्यंत माधुर्य वर्णन करते हुए बापू की आंखें नम हो गई । बारात जब अवध पहुंची तब चारों दंपत्ति की मां आरती के थाल लेकर स्वागत बड़े हर्षोल्लास के साथ किया । अवध में चारों ओर मंगल गान गाया गया । समस्त अवध राम सीता के प्रकाश पुंज से प्रकाशित हो उठा। धीरे-धीरे समस्त अतिथि विदा हुए ,ऋषि विश्वामित्र को विदा करने स्वयं राजा दशरथ सरयू नदी के तट पर आते आए हैं। बापू ने विश्वामित्र की महिमा का बखान करते हुए कहा कि सच्चा साधु सम्राट की संपत्ति नहीं बल्कि उसकी सेवा भक्ति देता है। वह कुछ लेता नहीं बल्कि अपने शिष्य की झोली खुशियों से भर कर जाता है ,य है गुरु प्रसाद। विश्वमित्र अपने सिंह आश्रम में चले जाते हैं । इसी प्रकरण के साथ बालकांड का प्रथम सोपान समाप्त हुआ। बापू ने अंत में कहा कि रामचरित के गुणगान से मेरी वाणी शुद्ध हो गई है ,राम का चरित्र सिंधु है उसे कोई पार कर सकता है क्या ? इसी के साथ बापू के नौ दिवसीय रामकथा को विश्राम दिया।
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