हवन पूजन से हुई मां की विदाई


शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक चले पूजन-अर्चन के बाद विजयादशमी को शहरवासियों ने मां भगवती को अंतिम विदाई दी। पूरे श्रद्धा एवं उल्लास के साथ ढोल-नगाड़ों के धुन पर नाचते-गाते श्रद्धालु जुलूस के साथ राजघाट पहुंचे और जयघोष के बीच मां की प्रतिमा को विसर्जित किया। राप्ती नदी को प्रदूषण से बचाने के मददेनजर कई प्रतिमाओं का विसर्जन प्रशासन द्वारा बनवाए गए पोरवरे में किया गया


गोररखपुर। विजयादशमी के दिन मां भगवती के भक्तों का उत्साह देखते ही बन रहा था अवसर था दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन का। सभी पांडालों में श्रद्धालुओं ने सुबह से ही प्रतिमाओं के विसर्जन की तैयारी शुरू कर दी। वे जुलूस के साथ गाजा-बाजा लिए देवी प्रतिमाओं को लेकर राजघाट पहुंचे और वहां प्रतिमाओं को विसर्जित किया। इसके अलावा डोमिनगढ़ में भी दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया। शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक देवी पांडलों में अनवरत नौ दिनों तक देवी पाठ चलता रहा। षष्ठी को देवी मूर्ति की पांडलों में स्थापना हुई तो सप्तमी को देवी के पट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिए गए। उसके बाद से ही लगातार दुर्गा पांडालों में लोगों की भीड़ उमड़ती रही। चार दिनों की पूजा- अर्चन के बाद विजयादशमी को देवी प्रतिमाओं को अंतिम विदाई दी गई। श्रद्धालु अपने-अपने पांडलों से देवी प्रतिमाओं को लेकर जुलूस के साथ राजघाट पहुंचे। जुलूस में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल थे। ढोल-नगाड़ों के धुन पर वे रास्ते भर नाचते हुए अबीर-गुलाल उड़ाते रहे। जुलूस में सबसे आगे दुर्गाबाड़ी की मूर्ति थी जबकि शहर की अन्य प्रतिमाएं उसके पीछे। जुलूस में शामिल श्रद्धालु मां जयकारे लगा रहे थे तो जुलूस में शामिल अखाड़ा दल के लोग करतब दिखा रहे थे। पूरा माहौल उत्सव का था। ट्रैक्टर-ट्राली और ठेलों से मूर्तियों को लेकर वे राजघाट पहुंचे और फिर शुरू हुआ विसर्जन का क्रम। विसर्जन के लिए प्रशासन ने पोखरे बनाए थे।


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