विश्वकर्मा जयंती

विश्वकर्मा जयंती हिंदू धर्म में ब्रह्मांड के दिव्य वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है। विश्वकर्मा भाद्र केबंगाली महीने के अंतिम दिन, विशेष रूप से भद्रा संक्रांति पर निर्धारित की जाती है। यही कारण है कि जब सूर्य सिंह सेकन्या पर हस्ताक्षर करता है इसे कन्या सक्रांति के रूप में भी जाना जाता है।


भगवान विश्‍वकर्मा के बारे में स्‍कंद पुराण के प्रभात खंड में बताया गया है कि वह बृहस्पति की बहन भुवना जो कि अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्‍नी थीं, उनके पुत्र हैं। पुराण में यह भी जिक्र मिलता है कि भगवान विश्‍वकर्मा की मां भुवना सभी ब्रह्मविद्याओं को जानने वाली थीं।


भगवान विश्‍वकर्मा ने हर युग में देवी-देवताओं के लिए अलग-अलग वस्‍तुओं का निर्माण किया। इसमें सोने की लंका, हस्तिनापुर, स्‍वर्गलोक, पाताल लोक, पांडवों की इंद्रप्रस्‍थ नगरी, श्रीकृष्‍ण की द्वारिका, वृंदावन, सुदामापुरी, गरुड़ का भवन, कुबेरपुरी और यमपुरी का निर्माण किया।


विश्‍वकर्मा ने भवन ही नहीं बल्कि देवताओं के लिए अस्‍त्र-शस्‍त्र का भी निर्माण किया। इसमें भगवान विष्‍णु का सुदर्शन चक्र, त्रिपुरासुर से युद्ध् के लिए शिव जी को त्रिशूल और रथ बनाकर दिया, इंद्र के लिए महर्षि दधीचि की अस्थियों से वज्र बनाकर दिया। कुबेर के लिए पुष्‍पक विमान, दानवीर कर्ण के लिए कुंडल और यमराज के लिए कालदंड का निर्माण भी भगवान विश्‍वकर्मा ने किया है।



चार युगों में विश्वकर्मा ने कई नगर और भवनों का निर्माण किया। कालक्रम में देखें तो सबसे पहले सतयुग में उन्होंने स्वावर्गलोक निर्माण किया,त्रेतायुग में लंका का, द्वापर में  द्वारका का और  के आरम्भ के ५० वर्ष पूर्व हस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ का निर्माण किया। विश्वकर्मा ने ही जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ मंदिर में स्थित विशाल मूर्तियों (कृष्ण , बलराम और सुभद्रा) का निर्माण किया।



Comments