शक्तिपीठ के रूप में श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है लेहड़ा देवी मंदिर

लेहड़ा देवी मंदिर पूरे वर्ष भक्तों का तांता लगा रहता है



शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध लेहड़ा देवी मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। मां के दरबार में श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते है। वैसे तो यहां पूरे वर्ष भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्र के दिनों में श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ता है। महराजगंज जिले के फरेन्दा तहसील मुख्यालय से आठ किमी. दूर स्थित लेहड़ा देवी मंदिर के संबंध में कई किंवदंतियां है। प्राचीनकाल में यह स्थल आद्रवन नामक घने जंगल से आच्छादित था। यहां पवह नामक प्राचीन नदी के तट पर मां वनदेवी दुर्गा का पवित्र मंदिर अवस्थित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस देवी मंदिर की स्थापना महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास काल में स्वयं अर्जुन ने की थी। इस धार्मिक स्थल का प्राचीन नाम अदरीना देवी थान रहा, जो वर्तमान में लेहड़ा देवी मंदिर के नाम से विख्यात है। प्राचीन लोक मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास की अधिकांश अवधि यही सघन आद्रवन में व्यतीत की।


दिर से कुछ ही दूरी पर एक प्राचीन तपस्थली कुटिया कई एकड़ परिक्षेत्र में अवस्थित है, जहां अनेक साधु-संतो की समाधियां हैं, जो इस तपस्थली से संबंधित रहे और अपने जीवनकाल में यहां तपस्यारत रहे। इन्हीं साधु योगियों में से एक प्रसिद्ध योगी बाबा वंशीधर का नाम आज भी संतों द्वारा अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है। वह एक सिद्ध योगी के रूप में विख्यात रहे है। योग बल पर उन्होंने कई चमत्कार और लोक कल्याण के कार्य किए थे। बाबा की शक्ति एवं भक्ति से प्रभावित कई वन्य जीव-जंतु भी उनकी आज्ञा के वशीभूत रहे। इनमें एक शेर एंव मगरमच्छ आज भी चर्चा के विषय बनते हैं, जिन्हें बाबा वंशीधर ने शाकाहारी जीव बना दिया था। उपलब्ध बौद्ध साक्ष्यों के अनुसार गौतम बुद्ध की माता माया देवी कोलिय गणराज्य की कन्या थी। बुद्ध का बाल्यकाल इन्हीं क्षेत्रों में व्यतीत हुआ। बुजुर्गों की मानें तो एक दिन लेहड़ा स्थित सैन्य छावनी के अधिकारी लगड़ा साहब शिकार खेलते हुए मंदिर परिसर में पहुंच गए। यहां पर भक्तों की भीड़ देख कर उन्होंने देवी की पिंडी पर गोलियों की बौछार शुरू कर दी। कुछ ही देर में वहां खून की धारा बहने लगी। खून देख कर भयभीत अंग्रेज अफसर वापस कोठी की तरफ आ रहा था कि घोड़े सहित उसकी मृत्यु हो गई। उस अंग्रेज अफसर की कब्र मंदिर के एक किमी. पश्चिम में स्थित है। इस घटना के बाद लोगों की आस्था लेहड़ा देवी के प्रति और भी बढ़ गई।


 


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