नवरात्रि पर्व की नौ 9 रातें देवी माँ के नौ 9 विभिन्न रूपों को समर्पित हैं जिसे नव दुर्गा भी कहा जाता है

शक्ति रुपणे देवी दुर्गा को धर्मग्रन्थों में पर्वत शिखर की चोटी की पुत्री क्यों कहा गया है...




  1 - शैलपुत्री माता,     2 -माँ ब्रह्मचारिणी,     3 -माँ चन्द्रघंटा,    4 - कूष्माण्डा माता,   5 - स्कन्द माता
   6 - कात्यायनी देवी,    7 -माँ कालरात्रि,    8 -माँ महागौरी,    9 -सिद्धिदात्री


देवी माँ या निर्मल चेतना स्वयं को सभी रूपों में प्रत्यक्ष करती है और सभी नाम ग्रहण करती है। हर रूप और हर नाम में एक  दैवीय शक्ति को पहचानना ही नवरात्रि मनाना है। असीम आनन्द और हर्षोल्लास के  नौ दिनों का उचित समापन बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक पर्व दशहरा मनाने के साथ होता है। नवरात्रि पर्व की नौ 9 रातें देवी माँ के नौ 9 विभिन्न रूपों को समर्पित हैं जिसे नव दुर्गा भी कहा जाता है।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। 


देवी की प्रथम रूप को शैलपुत्री के नाम से प्रचलित है
नव दुर्गा के प्रथम रूप को शैलपुत्री के नाम से प्रचलित है. शैल का अर्थ है शिखर, पर्वत की चोटी।
शक्तिण् देवी दुर्गा को धर्मग्रन्थों में पर्वत शिखर की चोटी की पुत्री क्यों कहा गया है।
हमें प्राय: ऐसा लगता है कि देवी दुर्गा कैलाश पर्वत की पुत्री हैं किन्तु यह बहुत ही निम्न सोच है। योग के पथ पर इसका सही अर्थ सबसे ऊँची छोटी, चेतना की सर्वोच्च स्तिथि है।
काशी विद्यापीठ के आचार्य पंडित योगेंद्र त्रिपाठी के अनुसार माँ दुर्गा को शैल पुत्री क्यों कहा जाता है, यह बहुत दिलचस्प बात है। जब ऊर्जा अपने शिखर पर होती है, केवल तभी आप शुद्ध चेतना या देवी रूप को देख, पहचान और समझ सकते हैं। उससे पहले, आप नहीं समझ सकते, क्योंकि  इसकी उत्त्पति शिखर से ही होती है। यहाँ शिखर का  अर्थ है किसी भी प्रकार का तीव्र, प्रचंड अनुभव या ऐसी भावना। यदि आप 100 प्रतिशत  क्रोधित हैं, तो आप देखें कि किस प्रकार क्रोध आपके सारे शरीर को जला देता है। प्राय: हम अपने सम्पूर्ण क्रोध को प्रकट  नहीं करते। अगर आप 100 प्रतिशत क्रोधित हो गए, तब आप उससे तुरंत ही बाहर आ जाएंगे। जब कुछ भी आपक़े सम्पूर्ण अस्तित्व को 100 प्रतिशत घेर लेता है, तभी देवी दुर्गा की उत्पति होती है। जब आप पूरी तरह से क्रोधित हो गए तो अनुभव करेंगे किअचानक एक ऊर्जा की लहर उठती है और उतनी ही तीव्रता से आप उस क्रोध से बाहर निकल जायेंगे।
कभी आप बच्चों के व्यवहार देखा है। वो जो कुछ भी करते हैं 100 प्रतिशत करते हैं। अगर वो क्रोधित हैं तो 100 प्रतिशत उसी क्षण क्रोधित हैं और तभी एकदम से उसे छोड़कर बाहर आ जाते हैं। वे क्रोधित हो जाने के बावजूद थकतें नहीं। और दूसरी तरफ व्यस्क लोग जऱा सा क्रोधित होने पर भी थक जाते हैं। ऐसा क्यों होता है, इसलिए क्योंकि व्यस्क अपना क्रोध 100 प्रतिशत नहीं दिखाते। किन्तु अब इसका यह अर्थ नहीं कि आप हर समय क्रोधित होकर घूमते रहें, तब आपको  क्रोध के साथ आने वाली मुसीबतों को भी झेलना पड़ेगा! इसका अर्थ यह है कि किसी भी अनुभव या भावना के शिखर, उत्तम चोटी पर होते हैं, तब उस शिखर, उस चोटी से दिव्य चेतना प्रकट होती है और यही शैलपुत्री का अप्रत्यक्ष अर्थ है।


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