बंगाल के कलाकार करते हैं मिट्टी से शक्ति की रचना

कलाकार कल्पना को देते हैं मूर्तरूप



मां दुर्गा यानी शक्ति की देवी। उनके स्वरूप की कल्पना और फिर उसकी रचना शायद यही एक खूबी होती है एक कलाकार की। कलाकार मिट्टी से बनी मां की प्रतिमा को जो स्वरूप देता है मां की वैसी छवि हम अपने मन मस्तिष्क में बना लेते हैं। गोरखपुर में दुर्गा प्रतिमा की स्थापना का इतिहास 125 साल पुराना है। उस दौर में भी बंगाल से कलाकार आकर यहां मूर्ति का निर्माण करते थे। फर्क सिर्फ इतना था कि उस समय ये कलाकार उसी जगह मूर्ति बनाते थे जहां दुर्गा प्रतिमा की स्थापित की जाती थी, जबकि अब ये कलाकार व्यावसायिक रूप से एक ही जगह मूर्तियां बनाते हैं और मूर्ति सजाने वाले उसे यहीं से ले जाकर पांडालों में सजाते हैं।


गोरखपुर । पुराना इतिहास मां दुर्गा की प्रतिमाओं की स्थापना का है लगभग उतना पुराना इतिहास यहां बंगाल से आकर दुर्गा प्रतिमा की बनाने वाले कलाकारों का भी है। यहां दुर्गा प्रतिमा बनाने वाले अधिकतर कलाकार बंगाल के हैं। ये कलाकार लगभग पांच महिने तक पूरे मनोयोग से दुर्गा की प्रतिमा प्रतिमाओं का निर्माण कर उसमें ऐसा रंग भरते हैं मानों प्रतिमा सजीव हो उठेगी। इतना ही नहीं जिन पांडालों में दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है उन पांडालों का निर्माण भी अधिकांशतः बंगाल से आए कलाकार करते हैं। इस समय गोरखनाथ मंदिर परिसर में डेरा डालकर मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने वाले कलाकार बासुदेव पाल बताते हैं कि गोरखपुर से उनका नाता करीब 35 वर्ष पुराना है। सबसे पहले वे बंगाली समिति द्वारा दुर्गाबाड़ी में मां की प्रतिमा बनाने आए थे। उस समय शहर में बहुत कम मूर्तियां सजती थीं। धीरे-धीरे दुर्गा प्रतिमा सजाने का प्रचलन बढ़ने लगा और दो-तीन साल में तकरीबन 20 से 25 मूर्तियां बनाने लगे। इस कार्य के लिए उन्हें बंगाल से कलाकारों की पूरी टीम लानी पड़ी। उनकी टीम में उस समय तकरीबन 30 सदस्य थे। अब उनकी टीम करीब 55 सदस्य हैं और वे करीब 70 मूर्तियों का निर्माण कर रहे हैं। उनका कहना है कि पहले और अब के समय में उनके काम में काफी अंतर आ गया हैं। बंगाल से कई अन्य कलाकारों की टीम भी अब गोरखपुर हर साल आती है। जो छोटे-छोटे कस्बों में जाकर प्रतिमाओं का निर्माण करने लगी है। जिले में अब हजारों की संख्या में मूर्ति का निर्माण हो रहा है। वे बताते हैं कि जिन मूर्तियों का निर्माण करते हैं उनमें 10 हजार से एक लाख रुपये तक की मूर्तियां शामिल हैं। उनका कहना हैं कि मिट्टी से शक्ति रचना का यह सफर काफी दुश्वारियों से भरा है। मूर्ति बनाने के लिए उन्हें मिट्टी से लेकर बांस और पुआल तक की व्यवस्था करनी पड़ती है। बांस व पुआल के सहारे वे प्रतिमा का ढांचा बनाते हैं और मिट्टी की सहायता से उसे अंतिम रूप देते हैं और सबसे बाद में उसमें रंग भरते हैं।


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